तहलका न्यूज,बीकानेर। अगर आपको कृषाण कालीन,मुगलकालीन,भारतीय रियासत,ब्रिटिश कालीन एवं आजादी के बाद से लेकर वर्तमान तक प्रचलित एवं अप्रचलित मुद्राओं का संग्रह देखना है तो शहर में तीन दिवसीय मुद्रा महोत्सव में इनका संगम देख पाएंगे। आसानियों के चौक स्थित सूरज भवन में बीकानेर मुद्रा परिषद के तत्वावधान में दूसरे बीकानेर मुद्रा महोत्सव का आयोजन 27,28,29 सितम्बर को किया जा रहा है। पत्रकारों को आयोजन की जानकारी देते हुए परिषद के अध्यक्ष महेन्द्र कुमार बरडिय़ा ने बताया कि 35 स्टॉल्स लगाई जा रही है। जिसमें तीन दिनों में देशभर से पांच सौ से ज्यादा मुद्रा संग्रहकर्ता आएंगे। इस मौके पर महोत्सव के पोस्टर का विमोचन किया गया।

ये वजह है प्रदर्शनी लगानी की
प्रदर्शनी लगाने के कारणों के बारे में पूछने पर बरडिय़ा ने बताया कि आज तक भारत की जो मुद्राएं जो चलन में आई थी वो 95 प्रतिशत विलुप्त सी हो गयी,क्योंकि जिस समय चली उस समय सोने,चांदी,तांबे के भाव और थे वर्तमान कुछ और है। जैसे जैसे धातुओं की कीमत बढ़ी वैसे वैसे लोगों ने इन मुद्राओं को गलाना शुरु कर दिया। इस तरह हमारी ऐतिहासिक मुद्राएं विलीन होने की तरफ बढ़ रही है। पिछले 20 वर्षों में पुराने संग्रहकर्ता ने आने वाली पीढ़ी का जागृत करने का प्रयास किया और धातु से अधिक मूल्य देकर उन्होंने उन मुद्राओं को संग्रह करना षुरु किया। उन संग्रहकर्ताओं ने आम जन से संपर्क किया एवं आग्रह किया कि उन दुर्लभ एवं ऐतिहासिक मुद्राओं का संरक्षण करें,ताकि आने वाली पीढ़ी भी हमारी संस्कृति से परिचित हो सके। ब्रिटिश काल में भी कागजी मुद्रा चली,उन मुद्राओं में प्रतिदिन छपने वाले दिन की तारीख व सन् दिया जाता था। उसके बाद आजाद भारत में भी कागजी मुद्रा का प्रचलन रहा। यह प्रचलन समयानुसार घटता बढ़ता रहा तो संग्रह कर्ताओं ने ये भी जानकारी देने लगे कि ये मुद्रा हमारी धरोहर है क्यों ने इसका भी संग्रह करें। तो संग्रहकर्ताओं की रुझान इस ओर बढ़ा इसलिये वर्तमान में आम जनता को जानकारी देने के लिये यह प्रदर्षनी लगाई जा रही है। इसमें समस्त भारत के मुद्रा संग्रह कर्ताओं के आने की जानकारी मिल रही है। एक जानकारी देना चाहता हूं जब गंगासिंह जी का रूपया प्रचलन में बंद हुआ तक उसकी कीमत 1रु थी अब संग्रह कर्ताओं में स्पर्धा के कारण इसका मूल्य 6000रु से लेकर 8000 रु तक हुआ। क्या ये बचत के रूप में कामयाब है। चालीस वर्ष पहले भारतीय मुद्रा भारत से बाहर के संग्रहकर्ता खरीदते थे। वर्तमान में भारत के संग्रहकर्ता की क्षमता बढ़ी यदि भारतीय संग्रह कर्ता विदेशों में जाते हैं वहां भी भारतीय मुद्राओं के ऑक्सन होते हैं तो वहां से भारत में लाने का प्रयास करते हैं यह संग्रहकर्ताओं की देन है।

आठ साल पहले हुआ था मुद्रा महोत्सव
बीकानेर मुद्रा परिषद के द्वारा 8 वर्ष पूर्व 22,23 जुलाई 2016 को मुद्रा महोत्सव की प्रथम प्रदर्र्शनी का आयोजन बीकानेर में किया गया। इसका अवलोकन करने वाले बीकानेरवासियों एवं बाहर से आने वालों ने इसे खूब सराहा एवं आगे भी ऐसे आयोजन का जल्द करने की आशा जताई।उपाध्यक्ष भरत कोठारी ने कहा राजस्थान की रियासतें में रियासत के प्राचीन सिक्के मिलते हैं,पुराने समय में उसमें उर्दू भाषा होती थी क्योंकि उस समय मुगल कालीन राज्य होते थे। जो राजस्थान की रियासतें होती थी उन्हें भी उर्दू में सिक्के छापने पड़ते थे। मुद्रा परिषद के सचिव प्रेमरतन सोनी का कहना है कि उसके बाद ब्रिटिश काल का समय आ गया तो उस समय रियासतों को ब्रिटिश सरकार से परमिशन लेकर सिक्के छापने का आदेश देना पड़ता था। तो उस समय रियासतों को भारत के हिन्दी व अंग्रेजी भाषा में सिक्कों का प्रचलन हुआ। उसी समय काल में ब्रिटिश साम्राज्य के सिक्कों का भी चलन होता है उन दोनों की मूल्यांकन भी एक समान रहती थी । देश की आजादी से पहले भारत में ब्रिटिश काल में विक्टोरिया, एडवर्ड,पंचम जॉर्ज, सिक्स जॉर्ज के नोट कागजी मुद्रा में भी काफी प्रचलन रहा। जो वर्तमान समय में अब आपको देखना दुर्लभ हो गया ।बीकानेर मुद्रा परिषद सदस्य नवीन बरडिय़ा का कहना है कि वर्तमान में आजादी के बाद 1रु का नोट सन् 1948 से सन 1994 तक 59 तरह के नोटों का प्रचलन हुआ। ये भी एक संग्रह करने योग्य है। मुद्रा परिषद के सदस्य राजीव खजांची का कहना है कि भारत में ब्रिटिश काल के समय चंद राजाओं के सिक्कों में उनके राजाओं की फोटो होती थी । जिसमें बीकानेर के राजा गंगासिंह जी,भावलपुर स्टेट के महाराज एवं त्रिपुर के राजा,इंदौर के राजा,ग्वालियर के राजा,बड़ौदा के राजा एवं अन्य राजाओं की फोटो लगने लगी। मगर इसके लिये ब्रिटिश सरकार से इजाजत लेनी होती थी।शैलेन्द्र बरडिय़ा का कहना है वर्तमान में संग्रह के लिये एक नयी संग्रहकर्ताओं चालू किया है 000001 के नोटों का प्रत्येक नोट में संग्रह शुुरुकर दिया। उसके अलावा 111111 इस संख्या का भी संग्रह करने लगे। जो आने वाले समय में इन नम्बर की श्रंृखला अब मिलनी दुर्लभ हो गयी।