तहलका न्यूज,बीकानेर। पिछले 72 घंटों में प्रदेश में हुए सड़क हादसों में तीन दर्जन के करीब लोगों की अकाल मौत के बाद भी बस व ऑटो चालक सख्त यातायात नियमों की अनदेखी कर खुलेआम यात्रियों की जान से खिलवाड़ कर रहे हैं। जिला परिवहन विभाग या यातायात पुलिस ऐसे वाहनों के खिलाफ कार्रवाई करने की जहमत नहीं उठा रही है। सबसे खास बात तो यह है कि राजस्थान राज्य लोक परिवहन परिवहन की बसें भी यात्रियों को छत पर ही बैठा कर यात्रा करवा रही हैं। बस मालिकों पर कार्रवाई नहीं करना कई सवाल खड़े कर रहा है। जबकि यातायात के सख्त नियमों में बसों में क्षमता से अधिक यात्री बैठाने पर प्रत्येक सवारी एक हजार रुपये जुमाने का प्रावधान है। बावजूद इसके बसों के छतों पर यात्रियों को बैठ कर यात्रा करते देखा जा रहा है। जिसके विडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहे है। मजे की बात तो यह है कि इसमें कुछ विडियो कलक्टर निवास के आगे,कुछ संभागीय आयुक्त के आवास के आगे के भी है।

ओवरलोड पर कार्रवाई की सख्त जरूरत
यातायात के सख्त नियमों और भारी जुर्माने के प्रावधान को लेकर आम लोगों का कहना है कि पुलिस केवल इक सवार व छोटे वाहनों से सफर करने वाले लोगों को परेशान करने में लगी है। ओवरलोड बसों,टेम्पो या ट्रकों पर परिवहन विभाग या यातायात पुलिस द्वारा किसी तरह की कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। लगभग सभी रूटों पर ओवरलोड कर बस व टेम्पो चालक यात्रियों के जान से खेल रहा है। जो कभी भी बड़े हादसे का गवाह बन सकता है।

बसों पर 55 से 60 यात्रियों को बैठाया जाता
जिला मुख्यालय से विभिन्न मार्गों पर चलने वाली लगभग सभी यात्री वाहनों का संचालन ओवरलोड के बाद ही होता है। आठ सीट वाले टेम्पो पर 10-12 लोग को बिठाया जाता है। जबकि 42 सीट वाली बसों पर 55 से 60 यात्रियों को बैठाया जाता है। अन्य वाहनों पर यात्रियों को भेड़-बकरियों की तरह लाद दिया जाता है। बावजूद परिवहन विभाग इन पर कोई कार्रवाई नहीं करता है। आखिर हेमलेट व सीट बैल्ट से जुर्माना वसूली कर किस तरह से सरकार या विभाग सड़क दुर्घटनाओं को रोकने का दावा कर रही है। सवाल लाजमी है जिसको लेकर प्रशासन को पहल करने की जरूरत है।

बसों में सुरक्षा मानकों की उड़ रहीं धज्जियां
मोटरयान अधिनियम 1988 व समय-समय पर यात्रियों की सुरक्षा के लिए बने मानकों की पूरी तरह अनदेखी होती है। जिले में चलनेवाली लगभग सभी यात्री वाहनों में न्यूनतम सुरक्षा के उपाय भी उपलब्ध नहीं है। विभाग द्वारा जारी दिशा-निर्देश के अनुसार,इन यात्री वाहनों में प्राथमिक चिकित्सा के लिए फर्स्ट एड बॉक्स होने चाहिए,लेकिन जिले के सभी यात्री वाहनों में ये साधन नदारद देखे गए हैं। बसों में आपातकालीन खिड़कियों की हालत बदतर दिखी। लगभग सभी वाहनों में लगे आपातकालीन खिड़कियों के शीशे जाम दिख। किराया सूची के सार्वजनिक नहीं होने से यात्रियों से अधिक भाड़ा वसूला जाता है। बावजूद परिवहन विभाग यात्री वाहनों में किराया-सूची लगवाने को लेकर उदासीन रवैया अपनाता है।स्थिति यह है कि सडक़ों पर बस आपरेटर खुलेआम नियमों की धज्जियां उडा रहे हैं, लेकिन उनके खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो रही है।

पूर्व पार्षद ने फोन किया तो बोले करते है कार्रवाई
जब इस बारे में पूर्व पार्षद मनोज विश्नोई ने परिवहन अधिकारी को फोन किया तो उनका कहना था कि ओवरलोड वाहनों के खिलाफ समय-समय पर कार्रवाई की जाती हैं। जबकि हकीकत में माह में एक दो बसों को पुलिस पकड़ कर चालान करने के बाद परिवहन विभाग के अधिकारियों से जुर्माना की रसीद कटवा कर अपने कार्य की इतिश्री कर लेते हैं।

ये हैं परिवहन विभाग के नियम, लेकिन पालन रत्तीभर भी नहीं
बसों में महिलाओं के लिए सीट आरक्षित रहेगी, महिला नहीं होने पर ही उस सीटर पर पुरुष बैठ सकेगा। लेकिन बसों में महिलाएं खड़ी होकर सफर करती हैं, नियम ताक पर हैं।
विकलांगों को किराए में 50 प्रतिशत छूट देना होगी। मगर, बस आपरेटर इस तरह की छूट नहीं देते हैं, यहां तक की विकलांगों को बैठने सीट भी नहीं दी जाती है।
32 सीटर से बड़ी बसों में दो दरबाजे होना अनिवार्य है। इमरजेंसी में यात्री आसानी से उतर सकें।
बस की फिटनेस हो, बीमा हो और लाइसेंस होना चाहिए। कई बार हादसों की शिकार बसों की फिटनेस और बीमा नहीं होता, इस वजह से घायलों, मृतकों को लाभ नहीं मिल पाता है।
ड्राइवर के पास खाकी कलर की ड्रेस होना चाहिए, नेम प्लेट होना चाहिए। ताकि महिलाओं और छात्राओं की सुरक्षा हो सके।
प्राथमिक उपचार की सामग्री बस में होना चाहिए। जरूरत पडऩे पर घायलों का प्राथमक उपचार हो सके।
बस में किराया सूची प्रदर्शित होना चाहिए। ताकि यात्रियों से मनमाना किराया न वसूला सके।
महिला सुरक्षा की दृष्टि से पुलिस के नंबर लिखे होना चाहिए।