तहलका न्यूज़,सीकर। 13 रुपए के सीप से 2 लाख रुपए का हार्ट शेप का 68 कैरट का मोती निकलना आम बात नहीं है। सीकर के पर्ल फार्मर विनोद भारती (43) ने साढ़े 3 साल के सब्र के बाद ऐसा नायाब मोती पाया। उनका कहना है कि पर्ल फार्मिंग किसान के सब्र की परीक्षा लेती है।

म्हारे देस की खेती में इस बार बात मोतियों वाले बाबा के नाम से पहचान रखने वाले किसान विनोद भारती की।

सीकर जिला मुख्यालय से करीब 50 किलोमीटर दूर खाटू कस्बा है। यहां से 11 किलोमीटर की दूरी पर छोटा सा गांव है बाय। गांव में किसान विनोद भारती का 5 हजार वर्ग मीटर का फार्म हाउस है। यहां 5 अलग-अलग आकार के पॉन्ड और पर्ल फार्मिंग के लिए जरूरी सेटअप है। सीप से मोती उगाकर विनोद भारती सालाना औसतन 15 लाख रुपए की इनकम कर रहे हैं।

मोतियों वाले बाबा के नाम से पहचान

मोती की खेती से जुड़े होने के कारण ही उन्हें मोतियों वाला बाबा कहा जाता है। विनोद का दावा है कि वह राजस्थान के पहले नवाचारी मोती उत्पादक किसान हैं। खेती में नए प्रयोग की वजह से उन्हें पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और वर्तमान सीएम अशोक गहलोत सम्मानित कर चुके हैं।

कंप्यूटर पढ़ाया फिर की पर्ल फार्मिंग

किसान विनोद ने बताया कि 7 साल पहले 2016 में उन्होंने पर्ल फार्मिंग शुरू की। इससे पहले ग्रेजुएशन कंप्लीट करने के बाद उन्होंने कंप्यूटर में डिप्लोमा किया और कंप्यूटर टीचर बन गए। बच्चों को पढ़ाने लगे। इस दौरान कुछ अलग करने का विचार किया।पर्ल फार्मिंग के बारे में पता किया तो कृषि वैज्ञानिकों से जानकारी मिली कि मोती समुद्री किनारे वाले एरिया में होता है। राजस्थान में मोती उत्पादन के हालात कठिन हैं। उन्होंने इंटरनेट पर मोती की खेती के वीडियो देखे। एक परिचित कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि माहौल को अनुकूल कर राजस्थान में मोती की खेती की जा सकती है।हार्ट शेप के बड़े आकार के इन मोतियों की कीमत 2 लाख रुपए है। ये 68 कैरट के मोती हैं।2016 में ही विनोद उड़ीसा गए और वहां आईसीएआर (भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद) के जरिए भुवनेश्वर में केंद्रीय मीठा जलजीव पालन संस्थान (CIFA) में एक महीने तक मोतियों की खेती की ट्रेनिंग ली। ट्रेनिंग लेने के बाद उन्होंने अपने गांव लौटकर 10 बाई 5 फीट की छोटी जगह में पॉन्ड बनाया और उड़ीसा से 500 सीप लाकर काम शुरू किया।एक साल की मेहनत के बाद उन्हें सिर्फ 45 सीप से मोती मिले। पहली बार में उन्हें नुकसान हुआ।

नुकसान पर मां-पत्नी ने दी हिम्मत

नुकसान होने से विनोद निराश हुए। परिवार में मां, पत्नी और दो बच्चे हैं। मां और पत्नी ने उन्हें हिम्मत दी और नई ऊर्जा के साथ दोबारा काम शुरू करने की बात कही। विनोद दूसरी बार केरल गए और 1000 सीप लेकर आए। इस बार उन्हें मोती उत्पादन से तीन गुना मुनाफा हुआ। अब वे 7 साल से लगातार मोती उत्पादन कर रहे हैं।किसान विनोद भारती के फार्म हाउस पर तैयार क्रीम, वाइट, गोल्ड और यलो रंगों के मोती।पॉन्ड में सीप रखने के प्रैक्टिकल, थ्योरिकल और सर्जिकल तीनों तरह के काम विनोद खुद करते हैं। वर्तमान में वह 20 हजार मोती सालाना उत्पादित कर रहे हैं। 10 हजार मोतियों का ऑर्डर पहले से मिला हुआ है। उनका टारगेट 50 हजार मोती का प्रोडक्शन करना है।

अब 50 लाख का सेटअप बनाया

उनके फार्म हाउस में 2 हजार वर्ग मीटर में पर्ल फार्मिंग प्रोजेक्ट लगा है। इसके अलावा पॉन्ड, सीप सर्जरी के लिए बिल्डिंग, ऑफिस आदि हैं। विनोद ने बताया कि शुरुआत में सीप से लेकर पॉन्ड और बाकी खर्चे मिलाकर 40-50 हजार में काम हो गया था। अब 50 लाख का सेटअप है। सीप उड़ीसा और केरल में मिलते हैं। सीप की प्रजातियां अलग अलग होती हैं।सीप से सिर्फ मोती ही नहीं बल्कि शैल और अन्य प्रोडक्ट भी डिमांड में होते हैं।उन्होंने कहा कि अच्छी क्वालिटी की सीप 15 रुपए में आ जाती है। हालांकि सर्दी में इसकी रेट 25 रुपए तक पहुंच जाती है। गर्मी में रेट 15 से भी नीचे आ जाती है। सीप को विशेष तौर से स्पेशल बॉक्स में पैक करके एसी ट्रेन से उड़ीसा या केरल से लाया जाता है। इसके बाद जल्द से जल्द पॉन्ड तक पहुंचाया जाता है। इस समय सीप की रेट करीब 13 रुपए चल रही है।

सीप की लार से बनता है मोती

विनोद ने बताया कि सीप एक जिंदा प्राणी होता है, जिसका आवरण कठोर शैल से ढंका होता है। एक सीप में दो मोती होते हैं। ये मोती सीप की लार से एक से तीन साल में तैयार होते हैं। मोती प्राप्त करने के लिए सीप की सर्जरी की जाती है। इसलिए इसके सेटअप में पॉन्ड, सर्जरी का सामान, सीप के लिए खुराक, सप्लीमेंट्री फूड, दवा, ग्रीन नेट सभी चीजों का इंतजाम करना होता है।अपने फार्म हाउस में पॉन्ड के पास खड़े किसान विनोद भारती।सीप को नेट के जरिए पानी में रखा जाता है। पानी में शैवाल, मल्टीविटामिन और चूना डाला जाता है। चूने से मोतियों में चमक आती है। दिन में दो बार मशीन से पानी में ऑक्सीजन दी जाती है। पानी को 20 से 25 डिग्री के तापमान पर मेंटेन कर रखा जाता है।

मोती की इसलिए है डिमांड

मोती को नौ रत्नों में एक माना गया है। ज्योतिष के अनुसार इसे चंद्रमा का रत्न माना गया है। हाई बीपी और तनाव की प्रॉब्लम के लिए ज्योतिषी मोती पहनने की सलाह देते हैं। इसके अलावा मोती कैल्शियम प्रोडक्ट है, इसलिए इससे कई तरह की भस्म और दवाएं बनती हैं। प्राचीन काल से मोती श्रृंगार के भी काम आता है। इससे गहने, झुमके, हार आदि बनते हैं।विनोद ने बताया कि पर्ल प्रोडक्शन का काम 24 घंटे की जॉब है। लगातार सीपों की देखरेख करनी पड़ती है। इसलिए यह उनके दो-तीन साथी फार्म हाउस पर ही रहते हैं।

पैसा और मान-सम्मान मिला

उन्होंने कहा कि ये ऐसा बिजनेस है, जिससे मुझे न केवल पैसा मिला है, बल्कि मान सम्मान और समाज में इज्जत मिली है। पूर्व सीएम व वर्तमान सीएम नवाचार के लिए सम्मानित कर चुके हैं। उन्होंने कहा कि सरकार किसानों की आय बढ़ाने के लिए पर्ल फार्मिंग जैसे नवाचार को प्रमोट कर रही है। सरकार से 25 लाख का प्रोजेक्ट मंजूर कराने का प्रयास चल रहा है।चांदी के पैंडल में जड़ा मोती। विदेशों में इस तरह के ज्वेलरी की भारी डिमांड है।विनोद ने कहा कि इस काम के लिए बहुत छोटी जगह पॉन्ड बनाकर काम शुरू कर सकते हैं। पॉन्ड को रेन वाटर हॉर्वेस्टिंग से जोड़ना चाहिए। शुरुआत में 30 हजार की लागत से पर्ल फार्मिंग शुरू की जा सकती है। इतनी कम राशि लगाकर सालाना 1 लाख की इनकम हो सकती है।उन्होंने कहा कि पर्ल प्रोडक्शन में मोती के अलावा शैल (सीप का आवरण) भी बिकते हैं, जिनसे खिलौने और सजावट के सामान बनते हैं। सीप का मांस भी बिकता है।

पर्ल फार्मर की दिनचर्या

विनोद ने बताया कि वे सुबह उठते ही मोती चुगना शुरू कर देते हैं। इसके बाद पॉन्ड में जमा सीपों को चेक करते हैं। सीपों को वन टू वन चेक करना होता है। मां सीपों का ट्रीटमेंट किया जाता है। डैड सीपों को हटा दिया जाता है। सीपों को सप्लीमेंट्री फूड डाला जाता है। सीप की सर्जरी की जाती है। सर्जरी उसी तरह होती है जैसे ऑपरेशन थिएटर में की जाती है। सीप बंद होती है, जिसे थोड़ा सा खोलकर सर्जरी की जाती है। सीप में मोती का डिजाइन प्लांट किया जाता है। फिर 3-3 दिन अलग अलग रखा जाता है।सीप की सर्जरी कर मोती निकालते किसान विनोद भारती।उन्होंने कहा कि करीब एक से डेढ साल में सीप में मोती तैयार हो जाता है। डिजायनर मोती 1 साल में तैयार हो जाता है। राउंड (गोल) मोती सालभर में तैयार हो जाता है।विनोद ने बताया कि सीप के लिए फूड पहले मार्केट से आता था। इसका खर्च 10 हजार रुपए प्रतिमाह होता था। इसके बाद खुद ने फूड बनाना शुरू कर दिया। इसकी महीने की लागत सिर्फ 1000 रुपए आती है।

अब दूसरे किसानों को दे रहे ट्रेनिंग

विनोद ने बताया कि पर्ल फार्मिंग से जुड़ी जानकारी व ट्रेनिंग लेने के लिए दूर-दूर से किसान आते रहे हैं। उन्हें मैं हर तरह की ट्रेनिंग देता हूं। भीषण गर्मी में तपने वाले इलाके में उन्होंने बेसमेंट में सेटअप जमाया ताकि अधिक गर्मी से सीप का नुकसान न हो।किसान विनोद ने कहा कि इस बार उन्होंने 25 से 50 हजार मोती प्रोडक्शन का टारगेट रखा है।उन्होंने कहा कि सीप में किस तरह का मोती निकलेगा ये सीप की क्वालिटी पर डिपेंड करता है। सीप में डिजायनर मोती, गोल्डन मोती, लाइट ब्लू मोती, वाइट मोती तैयार हुए हैं। मोती कब और कैसे बनेगा ये भाग्य पर निर्भर है।

थाइलैंड, जापान दुबई तक जा रहा मोती

फिलहाल, बाय गांव से मोती कोलकाता और हैदराबाद जा रहा है। इसके अलावा थाईलैंड, जापान, दुबई और अन्य अरब देशों तक पहुंच रहा है। उन्होंने कहा कि पहले हालात अलग थे। आज सिस्टम ऑनलाइन हो गया है। कस्टमर घर बैठे ही मोती बुक कर देते हैं।उन्होंने कहा कि नॉर्मल मोती का रेट 105 रुपए प्रति कैरेट होता है। इस तरह एक मोती की कीमत करीब 500 रुपए होती है। जबकि तैयार होने तक एक मोती पर करीब 50 रुपए खर्च होते हैं, इनमें बीज, सीप, सप्लीमेंट्री फूड, एंटीबायोटिक, मजदूरी सब शामिल है।विनोद ने ग्रेजुएशन के बाद सोलर एनर्जी में डिप्लोमा, कृषि विज्ञान केंद्र सीकर से नर्सरी में डिप्लोमा, पर्ल फार्मिंग डिप्लोमा किया है। विनोद भारती का परिवार भी फार्म हाउस स्थित घर पर ही रहता है। घर में मां, पत्नी भगवती, बेटी अमृता (21) और बेटा अनुराग (18) रहते हैं। बेटी जयपुर से एमकॉम कर रही है, जबकि बेटा भी जयपुर में रहकर सीए की तैयारी कर रहा है। बेटी भी पिता से पर्ल फार्मिंग के गुर भी सीख रही है।