तहलका न्यूज,बीकानेर। सनातन धर्म में अधिक मास अर्थात पुरुषोत्तम मास का विशेष महत्व है। सूर्य पुराण और पद्म पुराण में पुरुषोत्तम मास का अत्यधिक महत्व बताया गया है। ज्योतिष गणना अनुसार एक अधिक मास 32 महिना 16 दिन और 4 घटी के अंतर से आता है। इस मास के अधिपति स्वयं भगवान विष्णु है। अधिक मास के देवता भगवान विष्णु है। ज्योतिषाचार्य पंडित राजेन्द्र किराडू के अनुसार पुरुषोत्तम मास भगवान विष्णु का स्वरुप है। भगवान को अति प्रिय है। पुरुषोत्तम मास भक्तों को वांछित फल देने वाला कल्पवृक्ष है। इस मास में नित्य पूजा, व्रत, दान करने से जन्म-जन्म के क्लेश, विपत्ति, और दारिद्रय का नाश होता है।
अधिक मास सावन का क्या फल है
सूर्य पुराण के अनुसार प्रत्येक अधिक मास का अलग-अलग फल होता है। सूर्य पुराण व पद्म पुराण में सावन अधिक मास का फल अति श्रेष्ठ बतलाया है। सावन अधिक मास होने से सुख, समृद्धि की प्राप्ति होती है।
अधिक मास में निषेध कर्म क्या है
ऐतरेय ब्राह्मण में त्रयोदशमास को निन्ध कहा है। धार्मिक कार्य यथा- विवाह, यज्ञोपवीत, मंडन, गृह प्रवेश, नूतन प्रतिष्ठान का शुभारंभ आदि अनेक शुभ- मांगलिक कार्य वर्जित रहते है, परन्तु नित्य नैमितिक कार्य पितृ श्राद्ध, नामकरण, नक्षत्र शांति, संध्या वंदन एवं पंच महायज्ञ आदि कार्य कर सकते हैं।
पुरुषोत्तम (अधिक) मास के 33 देवता माने गए
पुरुषोत्तम (अधिक) मास के 33 देवता माने गए है। यथा: विष्णु, महाविष्णु, हरि, कृष्ण, अधोक्षज, केशव, माधव, राम, अच्युत, पुरुषोत्तम, गोविन्द, वामन, श्रीश, श्रीकान्त, विश्वाक्षी, नारायण, मधुरिपु, अनिरुद्ध, त्रिविक्रम, वासुदेव, प्रधुम्न, दैत्यारि, विश्वोमुख, जनार्दन, पद्मनाभ, दामोदर, श्रीपते, श्रीधर, गरुडध्वज, ऋषिकेश। इन 33 देवताओं की प्रसन्नता के लिए श्रद्धालु 33 की संख्या में वस्तुओं का दान करते है।
अधिक मास में किन वस्तुओं का करें दान
अधिक मास में 33 की संख्या में वस्तुओं के दान का महत्व बतलाया गया है। 33 मालपुओं का दान विधि पूर्वक करना चाहिए। कांसी की थाली, गुड, सोने की टिकड़ी,जलेबी, पताशा, ईमरती, काजू, पिस्ता, किशमिश, बादाम सहित अनेक प्रकार के फल 33 की संख्या में दान करने का महत्व है। अधिक मास में दीपदान का भी विशेष फल बताया गया है।
अधिक मास का व्रत कब व कैसे किया जाता है
इस बार सावन अधिक मास है। अधिक मास का व्रत 18 जुलाई से प्रारंभ हुआ व 16 अगस्त को पूर्ण होगा। अधिक मास में महा विष्णु-लक्ष्मी की प्रतिमा बनाकर नित्य षोडशोपचार पूजन करने, पुरुष सूक्त, श्रीसूक्त से पंचामृत से अभिषेक, श्रीमद् भागवत का मूल पाठ करने का विधान बतलाया गया है।
अधिक मास के व्रत कितने व कब करने चाहिए, उद्यापन कब होता है
अधिक मास का व्रत तीन बार करना चाहिए। इसके बाद हवन, उद्यापन करना चाहिए। प्रथम मास में 33 नारियल का दान करना चाहिए। दूसरे मास में 33 लड्डुओं का दान और तीसरे मास में 33 मालपुआ का दान करने व 33 ब्राह्मण भोजन का महत्व बतलाया गया है।