तहलका न्यूज,बीकानेर। आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों ने जोर अजमाइश शुरू कर दी है। जहां कांग्रेस ने एक निजी कंपनी से सभी विधानसभा चुनावों में अन्दरूनी सर्वे करवा लिया है तो भाजपा भी चार विधानसभाओं में जीत के घोड़े दौड़ाने के लिये जी जान से जुटी है। हालात यह है कि तीन विधानसभाओं में तो अन्य जिलों के नेता व पार्टी पदाधिकारी प्रवास कर आमजन की नब्ज टटोल रहे है। भारतीय जनता पार्टी के कुछ नेता पिछले एक महीने से कोलायत,श्रीडूंगरगढ़ और खाजूवाला विधानसभा में डेरा डाले हुए हैं। जिले के बाहर से आए इन नेताओं को पार्टी ने ही यहां भेजा है। इनके साथ एक-एक स्थानीय नेता को भी लगाया गया। सूत्रों की माने तो कर्नाटक हार के बाद से चौकन्नी हुई भाजपा मान रही है कि यहां स्थित कमजोर है और इसकी वजह तलाशने के लिए ही पार्टी ने स्थानीय समीकरणों की समझ रखने वाले नेताओ‌ं को जमीन पर उतारा है। दिन के साथ ही इन नेताओं की रात भी गांवों में गुणा-गणित में बीत रही है।बाड़मेर के नेता जुगल किशोर व्यास इन दिनों कोलायत विधानसभा का चक्कर लगा रहे हैं। वे दूसरी बार यहां पहुंचे। बीती रात देशनोक और पलाना क्षेत्र में थे। रात गांव में ही गुजारी। वे तथ्य जुटा रहे हैं कि आखिर क्यों भाजपा यहां दो बार लगातार हारी और अब ऐसा क्या हो जिससे पार्टी यहां से जीते। प्रदेश भाजपा के कोषाध्यक्ष पंकज गुप्ता श्रीडूंगरगढ़ में गांव गांव घूम रहे हैं। पता लगा रहे कि आखिर यहां पार्टी मजबूत कैसे हो। चुनाव में जीत का सूत्र क्या हो सकता है। नागौर के जिला प्रमुख भाकर चौधरी खाजूवाला में पार्टी की नब्ज टटोल रहे हैं। इन नेताओं को टॉस्क दिया गया कि ये अपनी अपनी आवंटित विधानसभाओं के जमीनी हालात पता करें। क्या पार्टी वहां चुनाव जीत सकती है? अगर हां तो कैसे? कोई नीति में परिर्वतन करना होगा या टिकट बदले जायं। इन सभी चीजों को एकजुट कर रिपोर्ट प्रदेश संगठन मंत्री को सौंपी जाएगी। दरअसल ये विधानसभा चुनाव में टिकट बंटने से पहले का सर्वे ही माना जा रहा है।

कोलायत विधानसभा- लगातार दो हार बनी चिंता का सबब
कोलायत में लगातार दो हार पार्टी पचा नहीं पा रही। पहले 1100 वोटों के लगभग पराजय मिली थी और फिर 11000 से। यहां से 2013 में देवी सिंह भाटी उम्मीदवार थे। 2018 में पूनम कंवर। अब पार्टी इसे हर हाल में जीतना चाहती है। अब टिकट बदले जाने से लेकर भितरघात और जातिगत समीकरणों पर पार्टी की नजर है।

खाजूवाला- 2018 की हार डर की वजह
खाजूवाला में भाजपा 2008 और 2013 में चुनाव जीती लेकिन 2018 में बुरी तरह हारी। करीब 31 हजार मतों से डॉ.विश्वनाथ मेघवाल पराजित हुए। इतने भारी अंतराल के कारण पार्टी वहां डरी हुई है। आखिर बड़ी हार के बाद अब जीत कितनी आसान है। यहां क्या प्रयोग किया जाए। क्या मौजूदा हालात हैं।

श्रीडूंगरगढ़- तीसरे नंबर पर थी पार्टी
यहां 2013 में पार्टी ने चुनाव जीता था लेकिन 2018 में भाजपा उम्मीदवार तीसरे नंबर पर पहुंचा था। जिस सीट पर भाजपा कई बार कब्जा जमा चुकी हो वहां अचानक से लेफ्ट पार्टी जीती जाती है। भाजपा तीसरे नंबर पहुंच गई। ये चिंता पार्टी को सता रही है। इसलिए यहां का फीडबैक जुटाया जा रहा है।

पश्चिम- उम्मीदवार का चयन है कठिन
यहां भी भाजपा चुनाव हारी लेकिन अंतराल 10 हजार मतों का था। ऊपर से निर्दलीय गोपाल गहलोत के वोटों को भाजपा असली हार का कारण मान रही है। यही वजह है कि भाजपा अब इसे अपने खाते में मानकर चल रही है। हालांकि यहां उम्मीदवार का चयन भाजपा के लिए बड़ी कसरत होगी। यहां एक गलत निर्णय नुकसानदायक हो सकता है।