तहलका न्यूज,बीकानेर। भुजिया और रसगुल्ला के लिये विश्व में अपनी पहचान रखने वाले बीकानेर की होली भी अलमस्त और यादगार है। जहां होने वाली रम्मतों के अलावा होली खेलने के अंदाज से देशी-विदेशी लोग स्थानीय लोगों के मुराद है। वैसे तो पूरे देश में होली रंग, गुलाल, इत्र और पानी से खेली जाती है। लेकिन बीकानेर में एक चौक ऐसा भी है,जहां रंगों की होली खेलने से पहले बालू रेत से होली खेलने की परम्परा है। कीकाणी व्यास चौक में धुलंडी के दिन खेली जाने वाली बालू रेत से होली अपनी अलग पहचान बनाए हुए है। यह दशकों से खेली जा रही है। मोहल्ला निवासी एस पी व्यास बताते है कि धुलंडी के दिन सुबह 6 बजे से 9 बजे तक रेत की होली का आयोजन होता है। इसमें मोहल्ले के बच्चों से बुजुर्ग तक शामिल होते है। शहर के स्थापना दिवस से यह परम्परा चली आ रही है। आपसी प्रेम सौहार्द के रूप में खेली जाने वाली इस होली में एक दूसरे को बालू रेत से सराबोर कर होली खेली जाती है। होली खेलने के दौरान जब कोई मोहल्लावासी यहां पहुंचता है मौजूद लोग उसे बालू रेत से होली खेलाते है। पूर्व आरएएस एम एम व्यास बताते है कि धुलंडी के दिन कीकाणी व्यासों के चौक में दशकों से खेली जा रही रेत होली के लिए पहले ऊंट गाड़ा के माध्यम से रेत आती थी। व्यास के अनुसार वर्तमान में ट्रेक्टर ट्रॉलियों के माध्यम से रेत मंगवाई जाती है, जिससे रेत होली खेली जाती है। कीकाणी व्यास पंचायती सम्पति ट्रस्ट की ओर से इसकी व्यवस्था की जाती है। ट्रस्ट के नारायण दास व्यास के अनुसार व्यास जाति के लोग शहर के किसी भी इलाके में निवास करते हो,लेकिन बालू रेत की होली खेलने चौक में आते है और फिर रंगों की होली खेलते है।