

तहलका न्यूज,बीकानेर। भारतीय जीवन बीमा निगम में कार्यरत कर्मचारियों के सबसे बड़े संगठन आल इण्डिया इंश्योरेंस एम्प्लॉयज एसोसिएशन AIIEA ने बीमा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफ डी आई) की सीमा को बढ़ाने का विरोध किया है।AIIEA की बीकानेर मंडल इकाई के मण्डल सचिव शौकत अली पंवार ने प्रेस वक्तव्य जारी कर कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 12 दिसंबर को पूंजी-परस्त आर्थिक सुधारों की एक श्रृंखला को मंजूरी दी है,जिसमें बीमा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की सीमा को 100 प्रतिशत तक बढ़ाने तथा बीमा क़ानून (संशोधन) विधेयक को स्वीकृति देना शामिल है।बीमा क्षेत्र का डी-नेशनलाइजेशन वर्ष 1999 में IRDA विधेयक के पारित होने के साथ किया गया था।इसके बाद से विदेशी साझेदारों के साथ अनेक निजी बीमा कंपनियाँ जीवन और गैर-जीवन—दोनों क्षेत्रों में कार्यरत हैं।इन कंपनियों के व्यवसाय संचालन के लिए पूंजी कभी भी बाधा नहीं रही है। वास्तव में, बीमा क्षेत्र में कुल एफडीआई,नियोजित पूंजी का मात्र लगभग 32 प्रतिशत ही है।ऐसी स्थिति में सरकार द्वारा एफडीआई सीमा को 100 प्रतिशत तक बढ़ाना और विदेशी पूंजी को भारत में पूर्ण स्वतंत्रता देना पूरी तरह से तर्कहीन है। इस निर्णय के न केवल भारतीय अर्थव्यवस्था पर, बल्कि भारतीय बीमा कंपनियों पर भी गंभीर दुष्परिणाम पड़ेंगे।इससे मौजूदा कंपनियों के अधिग्रहण हेतु शत्रुतापूर्ण बोलियाँ (hostile bids) भी लग सकती हैं।शौकत अली ने कहा कि AIIEA का दृढ़ मत है कि विदेशी पूंजी को पूर्ण स्वतंत्रता और अधिक पहुँच देने से बीमा उद्योग की सुव्यवस्थित वृद्धि अवरुद्ध होगी तथा लोगों और व्यवसायों को आवश्यक सुरक्षा प्रदान करने के बजाय मुनाफ़ा-केंद्रित दृष्टिकोण हावी होगा।इसका भारतीय समाज के वंचित और हाशिये पर खड़े वर्गों के हितों पर विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा। इसके अतिरिक्त,विदेशी पूंजी कभी भी घरेलू बचत का विकल्प नहीं हो सकती। ऐसी स्थिति में घरेलू बचत को विदेशी पूंजी के हवाले करना न तो आर्थिक दृष्टि से और न ही सामाजिक दृष्टि से कोई औचित्य रखता है। भारत एक कल्याणकारी राज्य है और आर्थिक विकास के लिए, जिससे सभी नागरिकों को लाभ पहुँचे, बचत पर राज्य का अधिक नियंत्रण आवश्यक है।बीकानेर मंडल समिति के अध्यक्ष राकेश जोशी ने बताया कि बीमा क्षेत्र में प्रस्तावित ये संशोधन—जिनमें बीमा कंपनियों का गैर-बीमा कंपनियों के साथ विलय की अनुमति; संसदीय निगरानी से हटकर IRDA को व्यापक अधिकार देना; मध्यस्थों के लिए एकमुश्त पंजीकरण; विदेशी पुनर्बीमाकर्ताओं (re-insurers) के लिए नेट ओन्ड फंड्स (NOF) की सीमा को वर्तमान 5,000 करोड़ रुपये से घटाकर 1,000 करोड़ रुपये करना आदि शामिल हैं—देश को 1956 से पूर्व की उस स्थिति में वापस ले जाएँगे, जिसने जीवन बीमा व्यवसाय के राष्ट्रीयकरण के लिए सरकार को बाध्य किया था।AIIEA बीमा क्षेत्र में एफडीआई सीमा बढ़ाने के इस निर्णय के विरुद्ध अपना कड़ा विरोध दर्ज कराता है और इस कदम को तत्काल वापस लेने की माँग करता है। साथ ही, संघ सरकार को बीमा क़ानूनों—बीमा अधिनियम, 1938; एलआईसी अधिनियम, 1956; तथा IRDA अधिनियम, 1999—में प्रतिगामी संशोधनों के प्रस्ताव के प्रति आगाह करता है। AIIEA की माँग है कि आर्थिक नीतियों को कॉरपोरेट-परस्त झुकाव से हटाकर जनोन्मुखी दिशा में पुनर्संरेखित किया जाए। सरकार को कॉरपोरेट मुनाफ़े से ऊपर जनता के हितों को रखना चाहिए। अखिल भारतीय बीमा कर्मचारी संघ (AIIEA) इस निर्णय की कड़ी निंदा करता है और इसके विरुद्ध जनमत को संगठित करना निरंतर जारी रखेगा।

