

तहलका न्यूज,बीकानेर। 0 से 6 वर्ष तक के बच्चों को मोबाइल-टीवी स्क्रीन से पूरी तरह दूर रखें। 6 से 14 वर्ष के बच्चों को खो-खो, कबड्डी जैसे पारंपरिक खेलों में जरूर शामिल करें। इससे मानसिक विकास बेहतर होता है और अवसाद की संभावना कम रहती है।उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि छोटे बच्चों का चाचा,ताऊ,बुआ,फूफा जैसे रिश्तेदारों से जुड़ाव कराना भी उनकी समझ और भावनात्मक विकास के लिए बेहद ज़रूरी है।यह विचार डॉ.श्याम अग्रवाल ने लोकराग फाउंडेशन एवं रोटरी रॉयल्स द्वारा स्वास्थ्य जागरूकता अभियान ‘निरामय’ के शुभारंभ पर एसडीपी मेमोरियल सीनियर सेकेंडरी स्कूल में कक्षा 6 से 12वीं तक के विद्यार्थियों के साथ संवाद और स्वास्थ्य जांच आयोजन में कहे।डॉ.अग्रवाल ने रोटी,राबड़ी,सलाद,सब्ज़ी,हमारी पारंपरिक हरी सब्ज़ियाँ,कम चीनी,कम नमकये सब बच्चों को खिलाने की आदत डालें और खुद भी अपनाएँ।एक और बड़ी समस्या दिख रही हैबच्चों को घर में चुप रखने के लिए मोबाइल स्क्रीन दे देना। बच्चे घंटों स्क्रीन पर रहते हैं। सात-आठ-दस साल के बच्चों से जब मैं मिलता हूँ,तो उनके मोबाइल गेम,वीडियो गेम,कार्टून के किरदारों के नाम उन्हें याद रहते हैं,लेकिन उनसे पूछोतुम्हारे चाचा का नाम? दादी का नाम? नाना-नानी का नाम?तो वे नहीं बता पाते।यह हमारी सांस्कृतिक कमी बनती जा रही है।हमें अपने बच्चों के लिए समय निकालना होगा।कार्यक्रम में चिकित्सकों ने बच्चों के शारीरिक-मानसिक विकास के लिए पारंपरिक खेल,परिवार के साथ जुड़ाव और घर के शुद्ध भोजन को सबसे उत्तम बताया।रोटरी रॉयल्स के अध्यक्ष रोटे.सुनील चमड़िया ने बताया कि इस अवसर पर कार्यक्रम के मुख्य अतिथि,मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ.पुखराज साध ने विद्यार्थियों से रूबरू होते हुए कहा कि हमें बाहर के खाने से जितना हो सके बचना चाहिए।यह स्वास्थ्यवर्धक नहीं होता और कई बार खतरनाक भी साबित होता है।उन्होंने कहा,“फास्ट फूड,मिठाई या कोई भी खाद्य पदार्थ हो, घर का बना हुआ ही सबसे शुद्ध और सुरक्षित है।बाहर के खाने में मिलावट की आशंका रहती है,जो बच्चों के स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान पहुंचा सकती है।”संवाद में वरिष्ठ चिकित्सक,चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के उपनिदेशक डॉ.राहुल हर्ष ने बच्चों को अपने परिवार,समाज और देश के लिए जीने के लिए प्रेरित करते हुए कहा कि हमें विद्यार्थी जीवन में पाँच नियम “काग चेष्टा,बको ध्यानं,स्वान निद्रा,परहेज तथा नियमित खूब शारीरिक चुस्ती वाले खेल”नियमित रूप से स्थापित कर पालन करना चाहिए।विद्यालय प्राचार्या डॉ.सीमा पुरोहित ने शाला में शिक्षा के साथ ही स्वास्थ्य जागरूकता तथा खेल गतिविधियों की जानकारी रखते हुए‘निरामय’ स्वास्थ्य अभियान के महत्व को सदन के सामने रखते हुए आज के समय में ऐसे ठोस प्रयासों की पहल उपयोगी बताई।रोटे.सचिव विपिन लड्ढा ने शास्त्रों का उदाहरण देते हुए कहा,“पहला सुख निरोगी काया” को आधार मानते हुए दोनों संस्थाएँ इसी दिशा में निरंतर कार्य करती रहेंगी और लगातार प्रयास जारी रहेंगे।
सेमिनार के दौरान हुई निःशुल्क जाँच:
सेमिनार के दौरान 40 विद्यार्थियों एवं 10 शिक्षकों की निःशुल्क हीमोग्लोबिन एवं शुगर की जाँच की गई। जाँच में डॉ.श्याम अग्रवाल चाइल्ड केयर हॉस्पिटल से राजकुमार देवड़ा का विशेष सहयोग रहा।कार्यक्रम का संचालन लोकराग फाउंडेशन के निदेशक आनंद आचार्य ने किया तथा फाउंडेशन की निदेशक योगेश खत्री ने सभी अतिथियों एवं स्कूल प्रबंधन का आभार व्यक्त किया।आयोजन के दौरान लोकराग फाउंडेशन के निदेशक विनय थानवी,रविकान्त पुरोहित,रोटे.सीए दीपक व्यास,रोटे.नितेश रंगा,शिक्षक विनय व्यास सहित बड़ी संख्या में शिक्षकों ने सक्रिय सहभागिता निभाई।

