




तहलका न्यूज,बीकानेर। जैन धर्म में वर्षीतप (या वर्षी तप) एक अत्यंत उच्च कोटि का आध्यात्मिक अनुष्ठान माना जाता है। वर्षीतप का अर्थ है एक वर्ष तक नियमित तपस्या करना। इस तपस्या में साधक एक वर्ष तक नियत क्रम से उपवास (आहार नियम) और अन्य आत्मशुद्धि के अभ्यास करते हैं। इसका उद्देश्य आत्मा को शुद्ध करना, कर्मों का क्षय करना और मोक्ष के मार्ग पर आगे बढ़ना है।जैन धर्म की दृष्टि में वर्षी तप आध्यात्मिक अनुष्ठान है। इसमें साधक का मूल लक्ष्य चित्त शुद्धि है,जबकि वर्ष भर चलने वाले इस तप से लोगों को निरोगी काया भी मिलती है। ये उद्गार पत्रकारों से वार्ता के दौरान आचार्य महाश्रमण के अज्ञानुवर्ति उग्रविहारी तपोमूर्ति मुनिश्री कमल कुमार ने कही। उन्होंने कहा वर्षीतप वर्ष भर चलने वाला पूर्ण वैज्ञानिक अनुष्ठान है। तभी ढाई हजार वर्ष से यह निरंतर साधकों के अभ्यास, अनुभव व प्रयोग में है। जीवन में आरोग्यता व सरलता आदि इसके भौतिक लाभ भी हैं।
वर्षीतप मुख्य विशेषताएँ
साधक एक दिन भोजन करते हैं और एक दिन उपवास करते हैं, तथा कई अन्य नियमों का पालन करते हैं।
भोजन भी बहुत सीमित मात्रा में और संकल्प पूर्वक लिया जाता है।
तपस्या के साथ-साथ साधक ध्यान, स्वाध्याय (धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन) और प्रार्थना करते हैं।
वर्षी तप के अंत में अखंड शांति और आत्मिक संतोष की अनुभूति होती है।
प्रसिद्ध उदाहरण: भगवान महावीर ने दीक्षा लेने के बाद 13 महीने 10 दिन तक कठोर तप किया था, जिसे वर्षी तप का आदर्श माना जाता है।
आध्यात्मिक दृष्टि से, वर्षी तप:
संयम और त्याग का चरम अभ्यास है।
शरीर को साधन मानकर आत्मा के शुद्धिकरण पर बल देता है।
अहंकार, आसक्ति और इच्छाओं पर नियंत्रण सिखाता है।
मोक्षमार्ग में सहायक है, क्योंकि तप से कर्मों का निर्जरा (क्षय) होता है।
चाहें मुनि हों या श्रावक (गृहस्थ), जो भी साधक वर्षीतप करता है, वह जैन धर्म में अत्यंत श्रद्धा और सम्मान का पात्र बनता है।
46 वर्षों सेे लगातार कर रहे है वर्षीतप
आचार्य तुलसी से दीक्षा लेने वाले गंगाशहर के जन्मे मुनिश्री कमल कुमार ने बताया कि वे पिछले 46 वर्षों से लगातार वर्षीतप कर रहे है। इसके अलावा मुनिश्री विमल विहारी जी की प्रथम,मुनिश्री श्रेयांस कुमार की 9 वां वर्षीतप है। वहीं मुनिश्री श्रेयांस कुमार ने धर्मचक्र की तपस्या,एक से 16 तक तपस्या की लड़ी,21 दिनों की तपस्या,2 मासखमन भी किये है। तो मुनिश्री मुकेश कुमार का प्रथम वर्षीतप है। उन्होंने एक बेला,2 तेला व 9 की तपस्या भी की है। मुनि श्री नमि कुमार ने 1 से 16,18 से 21,23 और 23 से 39 तक लड़ी,51 व 62 की तपस्या की है। अभी गंगाशहर पधारने के बाद भी लम्बी -लम्बी तपस्या निरन्तर कर रहे हैं।
तेरापंथ भवन में होगा पारणा
उन्होंने बताया कि जैन समाज जनों द्वारा पूरे 13 माह तक एक दिन छोड़कर एक दिन उपवास किया जाता है। इस तपस्या को वर्षीतप कहा जाता है। इसमें एक दिन बिल्कुल कुछ नहीं खाया जाता है। वहीं एक दिन केवल दो समय सुबह सूर्योदय के बाद और शाम को सूर्यास्त के पहले खाते हैं। इस प्रकार पूरे 13 माह व्रत करने के बाद वर्षीतप का पारणा आखातीज के दिन होता है। जिसमें गन्ने के रस से तपस्या करने वाले को पारणा करवाया जाता है। इस बार भी तेरापंथ भवन में यह आयोजन 30 अप्रैल को होगा। जिसमें 21 जने पारणा करेंगे।
जैन समाज का सबसे बड़ा तप है।
चैत्र माह से होता है शुरू वर्षीतप
वर्षीतप की शुरूआत चैत्र माह में हो जाती है। जिसको भी यह व्रत करना होता है चैत्र माह से एक दिन छोड़कर एक दिन उपवास करने लगता है। ताकि आखातीज के दिन पूरे 13 माह पूर्ण हो जाएं। यह जैन समाज का सबसे बड़ा तप कहलाता है। क्योंकि इसमें करीब 6 माह से अधिक का व्रत हो जाता है। इस चैत्र माह में भी गंगाशहर में अनेक श्रावक श्राविकाओं ने तपस्या प्रारंभ की है।