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तहलका न्यूज,बीकानेर। ये नखरे, ये निगाहें उफ्फ हथियार बहुत है,अजी क़त्ल तो कीजे यहाँ तैयार बहुत है। किसी शायर की यह पंक्तियां इन दिनों बीकानेर में सटीक प्रतीत हो रही है। जहां राजयोग के लिये तरह तरह के जतन किये जा रहे है। कुछ ऐसी ही चर्चाएं अब शहर के चाय चौपालों और पाटों पर होने लगी है। प्रदेश में इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर जहां प्रमुख राजनीतिक दलों ने कशमकश शुरू कर दी है। वहीं दावेदार भी अब सक्रिय हो गये है। समय के बदलाव के साथ ही चुनावी समर की वैतरणी पार करने के लिये जतन भी अलग अलग होने लगे है। कोई शहर में आएं दिन पोस्टर लगाकर पार्टियों का ध्यान आकर्षित कर रहा है तो कोई जीमण करके। एक अनार सौ बीमार वाली शहर की विधानसभा सीटों के लिये जहां पहले से मजबूत दावों का तोड़ कम नजर आता है,फिर भी कोई कद बढऩे और कोई पद की लालसा के लिये जीमण की रमक झमक से पार्टियों पर डोरे डालने का काम कर रहा है। जिसके कारण अब शहर के विज्ञापन-पोस्टर वार और जीमण की चर्चाओं ने राजनीतिक गलियारों में नई बहस शुरू कर दी है। हालांकि अभी तक किसी को भी इस बात का आभास नहीं है कि चुनाव से पहले राजनीतिक का यह ऊंट किस करवट बैठेगा। कल एक पार्टी की टिकट मांगने वाले कही दूसरी पार्टी के लिये वोट मांगते नजर न आएं। इस संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता है। किन्तु समय से पहले शहर में टिकट दावेदारों की आई बाढ़ ने चुनाव से पहले सोशल मीडिया पर चटकारे लेने का लोगों को मौका जरूर दे दिया है।कोई इसे शक्ति प्रदर्शन का नाम दे रहा है तो कोई सुनियोजित कार्यक्रम।
बीकानेर पूर्व में दावेदारों की लंबी फेरिहस्त
वैसे तो विधानसभा व लोकसभा चुनाव से पहले सैकड़ों दावेदार अपनी दावेदारी का दावा कर सुर्खियां बटोरने में लग जाते है। जबकि उन्हें भी इस बात का आभास होता है कि टिकट के लिये उनके द्वारा की गई दावेदारी में कितना दम है। फिर भी हर बार एक लंबी फेरिहस्त चुनाव लडऩे वालों की सामने आती है। इस बार भी कुछ ऐसा ही देखने को मिल रहा है। जिसके चलते कई दावेदार तो समाज की महापंचायतों के जरिये तो कु छ धार्मिक यात्राओं,त्यौहार,शहर के वर्षगांठ सहित अनेक छोटे से छोटे आयोजन में भी पोस्टरों के जरिये अपने आप को सशक्त उम्मीदवार पेश कर चुके है। बदलते परिवेश में अब टे्रड भी बदला है। जहां अब जीमण के जरिये अपनी ताकत आंकाओं तक पहुंचाने की फैशन भी शुरू हो गई है। एक जीमण विधानसभा पश्चिम में हुआ तो एक बीकानेर पूर्व में। हालांकि जीमणों इस दौर में अभी कुछ जीमण ओर बाकी है। बीकानेर तहलका ने अपने स्तर पर जुटाएं आंकड़ों में कांग्रेस व भाजपा से दस दावेदार बीकानेर पूर्व से अपनी उम्मीदार जता रहे है। मजे की बात तो यह है कि भाजपा से तीन बार की विधायक सिद्विकुमारी की टिकट कटने का ठोस कारण कोई नहीं बता पा रहा है। ऐसे में भाजपाई दावेदारों की मजबूती की हवा तो यहीं निकलती नजर आ रही है। वहीं का ंग्रेस के एक पैराशूट दावेदार के अलावा जो भी दावेदार अपना दावा इस सीट के लिये कर रहा है। वो अपने जीत का आधार कांग्रेस की जनकल्याणकारी योजनाएं और म ंहगाई राहत शिविर को बता रहा है। ऐसे में जो नये दावेदार है वो अपने वर्चस्व पर नहीं बल्कि पीएम और सीएम के सहारे इस चुनाव को जीतने का आस लगाएं बैठे है।
बीकाने पश्चिम में भाजपा के पास विकल्प की तलाश
इधर छ:बार के विधायक रहे शिक्षा मंत्री डॉ बी डी कल्ला के सामने भाजपा को मजबूत विकल्प की तलाश है। हालांकि यहां भी भाजपा के सात से आठ दावेदार है तो कांग्रेस से भी डॉ कल्ला की जगह दो अन्य दावेदार अपना पक्ष मजबूती से रख रहे है। ये तो ओर है कि यह टिकट लाने वाल पहली चुनौती को पार कर पाएंगे या नहीं।
प्रदेश घमासान का पड़ेगा असर
राजनीतिक जानकारों की माने तो दावेदारों द्वारा की जा रही जल्दबाजी के क्या परिणाम होंगे ये तो भविष्य के गर्भ में छिपा है। किन्तु कांग्रेस व भाजपा में चल रहे अन्र्तकलह के परिणाम आने वाले दिनों में निश्चित तौर पर देखने को मिलेंगे। जिसका पहला नतीजा टिकट वितरण के रूप में सामने आएगा। उसके बाद किसी नेता को तरजीह न मिलने पर भी उथल पुथल की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता। खैर प्रदेश की राजनीति किस ओर जाएगी यह तो आने वाले दो तीन महीनों में तय होगा। परन्तु चुनावी मौसम में नीत नए पैदा हो रहे दावेदारों के जतनों ने शहर की चुनावी फिजां और राजनीतिक दलों में हलचल पैदा जरूर की है।
जीमण के ये जोरदार बहाने
मजे की बात तो यह है कि जीमण के बहाने भी चुनावी वर्ष में अलग हो जाते है। कोई एक शाम अपने नाम कर रहा है तो कोई जन्मदिन को जीमण के जरिये यादगार बना रहा है। कोई कद बढऩे पर इस परम्परा का निर्वहन कर रहे है। भले की इन के तर्क कुछ अलग हो। किन्तु चुनावी साल में ऐसे जीमण कई देखने को मिलेंगे।