जयनारायण बिस्सा
तहलका न्यूज,बीकानेर। बीकानेर रियासत काल से पुष्करणा सावा चला आरहा है ऐतिहासिक प्रमाणों के आधार पर महाराजा सूरसिंह के समय से यह सावा परम्परा चली आ रही है। बीकानेर रियासत में सेना ,दीवानगिरी ,मुंसिफखाना ओर शाही दरबार के विभिन्न सेवादार पदों पर पुष्करणा जाति के लोग सेवा करते थे। राजसेवा के कारण विवाह करने का अवसर न मिलने के कारण पुष्करणा लड़के और लड़कियों का निश्चित आयु में विवाह न होने के कारण पुष्करणा समाज के अनुरोध पर रियासत द्वारा एक निश्चय समय में विवाह करने की अनुमति ओर सात साल के अंतराल में विवाह करने की आज्ञा के बाद सामूहिक सावा निकालने की रीति प्रारंभ हुई। सावे की इस परंपरा के पीछे महाराजा सूरसिंह का सन 1616 में ली गई इस प्रतिज्ञा से भी है कि उन्होंने अपने भतीजी के लड़के भीमसिंह की भाटियों द्वारा हत्या के बाद यह प्रतिज्ञा ली कि अब जैसलमेर रियासत में बीकानेर की किसी भी राजकुमारी का विवाह नही किया जायेगा इसी प्रतिज्ञा को पुष्करणा ब्राम्हमणो ने भी लिया। उस समय पुष्करणा जातियों का अधिक्तर विवाह सम्बन्धी जैसलमेर वाले थे। साथ ही हिन्दू विवाह सम्बन्धी निषेध के कारण अपनी जाति में विवाह के साथ बर्हि विवाह यानि अपने गोत्र ,गांव से बाहर विवाह करने के नियम के कारण बीकानेर रियासत के शहर में ही विवाह नहीं करते पा रहे थे। इन सभी समस्याओं के हल के लिए सामूहिक सावा निकाल कर रियासत की आज्ञानुसार एक ही दिन अपने शहर में अपनी की जाति के विभिन्न गोत्रो में विवाह करने की रीति प्रारंभ हुई आज भी सावे दिन कोई भी दूल्हा शहर के बाहर बारात ले कर नही जाता दुल्हन वाले शहर में आकर ही अपनी लड़कियों की शादी करते है और इस तरह पुष्करणा सावा 400 सालों से निरंतर चल रहा है। पहले सात साल फिर 1961 के बाद 4साल से होने लगा और 2005 से दो साल के बाद होने लगा है। यह सावा सिर्फ विवाह का आयोजन नहीं मात्र सामूहिक विवाह भी नहीं बल्कि अनेक रीतियों परम्परों ओर लोक प्रतिमानों की समग्र लोक संस्कृति है। जिसमें विवाह के 16 संस्कारों के समुच्चय के साथ लोक गीतों,लोक परम्पराओं की विविधता नजर आती है। सगे सम्बन्धियों की रिश्तेदारी की जो मधुरता ओर अपनत्व इस सावे में नजर आता है व कही ओर नजर नहीं आता है।पुष्करणा समाज में विवाह को लेकर आज भी कहि मान्यता जैसे पुष्करणा में कुंकु ओर पूंपू में शादी हो जाती है। एक धामे में जीमण हो जाता है,लड़की की विदाई पर ना कोई दहेज ना कोई लड़के के परिजनों को कुछ देने की कोई प्रथा सिर्फ लड़के को सोने की चेन घड़ी ओर बरातियों को साधारण खाने से ही विवाह सम्पन्न हो जाता है।यह आज के युग में आपको अजीब लग सकता है मगर सावे में आज भी यही होता है गली मोहल्ले या चौक के पांडाल में ही विवाह सम्पन्न हो जाता यद्यपि आज सम्पन्न पुष्करणा सभी आधुनिक रितियों ओर दिखावे की ओर बढ़ रहे है। वे अधिकतर सावे पर शादी करने से बचते है यह सावा सिर्फ पुष्करणा समाज का नहीं है। इसमें दूल्हा दुल्हन पुष्करणा होते मगर बाराती सभी जातियों के होते है। जब पूरा परकोटा शहर एक छत बन जाता है तो शहर के सभी घरों में हलचल होती है। सभी जातियों की औरतें एकत्रित होकर शादी की रस्मं निभाती है। माहेश्वरी,अग्रवाल,वैश्य जातिया ओर सम्पन्न परिवार गरीब परिवारों की बेटियों की शादियों का खर्चा उठा लेते है।यहां तक कन्यादान भी वे करते रहे है। कहीं औरतें कन्यावला व्रत रखती है।अपनी श्रद्धा से मुंह दिखाई के रूप में लड़कियों को भेट देकर अपना व्रत पूरा करती है। जजमानी जाति के लोग पूर्ण श्रद्धा से अपना कर्म करते आज शहर का हर सम्पन्न व्यक्ति इस सावे में अपना सहयोग देता है। विवाह के बाद बरी,जान,जुआ टिका,घर प्रवेश फिर थाली उठाने फिर गोद लेने और दादा ससुर की गोथली में से वधु का रुपये निकालने की प्रथा,जात ओर देवली,कुआ पूजा जैसे अनेकों लोकरीतियों को पूरा करने के बाद विवाह सम्पन्न होता है और वर वधु को समागम का अधिकार मिलता है। यह सावा सिर्फ लड़के लड़की का मिलन नहीं बल्कि समाज की निरन्तरता के लिए परिवारों सम्बन्धियों ओर लोकरीतियों का मिलन ओर सामाजीकरण की प्रकिया का महत्वपूर्ण चरण या पड़ाव है।

अब तक हो चुके है इतने सावे
पंडित ब्रजेश्वर लाल व्यास ने बताया कि 1961 से लेकर अब तक 21 पुष्करणा सावे हो चुके है। यह 22 वां सावा है। पहले यह सावा चार वर्षों से होता था। लेकिन 2005 से यह प्रति दो वर्षों से होने लगा। व्यास बताते है एक वर्ष दो सावे एक साथ हुए थे।
9 फरवरी 1961
1965 में
10 फरवरी 1969
21 अप्रेल 1969
19 फरवरी 1973
13 फरवरी 1977
9 फरवरी 1981
8 फरवरी 1985
31 जनवरी 1989
16 फरवरी 1993
18 मई 1997
30 जनवरी 2001
30 जनवरी 2005
6 फरवरी 2007
5 मई 2009
24 फरवरी 2011
31 जनवरी 2013
8 फरवरी 2013
1 फरवरी 2017
21 फरवरी 2019
2021 में कोरोना काल के कारण नहीं हुआ
18 फरवरी 2022
18 फरवरी 2024