तहलका न्यूज,बीकानेर। लंबे समय के बाद प्रदेश में शुरू हुए सहकारी संस्थाओं के चुनाव को स्थगित करने के आदेश सवालों के घेरे में खड़े हो गये है। हालांकि राज्य सहकारी निर्वाचन अधिकारी बृजेन्द्र राजोरिया प्रमुख सचिव विधानसभा के पत्र का हवाला देकर इस चुनावी प्रक्रिया में विधायकों व सांसदों के चुनावी प्रक्रिया में शामिल नहीं होने की बात कह रहे है। किन्तु अनेक ऐसे बिन्दु है,जिन पर आदेश निकालने से पहले मंथन नहीं किया गया। मजे की बात तो यह है कि राजस्थान सहकारी सोसायटी अधिनियम 2001 की धारा 34 के उपक्रम 6 में स्पष्ट किया गया है कि किसी सहकारी सोसायटी के निर्वाचन की प्रक्रिया एक बार प्रारंभ होने के बाद प्राकृतिक आपदा या क ानून और व्यवस्था भंग होने की परिस्थिति को छोड़कर किसी कारण से रोकी या मुल्तवी नहीं की जा सकती। इस वजह से इस आदेशों को लेकर अब सवालिया निशान लग रहे है। राजनीतिक जानकारों का तर्क है कि जिस समय राजोरिया ने पदभार ग्रहण किया था उस समय भी लोकसभा व विधानसभा के बजट सत्र आगामी समय में प्रस्तावित थे। ऐसे में सहकारिता के चुनाव करवाने की उन्हें क्या जल्दबाजी थी। इस दौरान कई सहकारी समितियों के चुनाव भी सम्पन्न हो गये। यहीं नहीं कई क्रय विक्रय समितियों में विधायक व सांसद सदस्य तक नहीं है। ऐसे में ऐसी संस्थाओं के चुनाव स्थगित करवाना विधि संगत नहीं है। एक सहकारी समिति के सदस्य ने नाम न छापने की शर्ते पर बताया कि कऱीब 11 वर्ष बाद माननीय उच्च न्यायालय के सख्त आदेश के बाद ही चुनाव कराये जा रहे हैं।पूर्व में भी उक्त अधिकारी नियम विरुद्ध कार्य करने के चलते एपीओ किए जा चुके है। ऐसे में ये आदेश पुन: इन्हें संदेह के घेरे में खड़ा करता है।
उठ रहे है ये सवाल
1. राज्य में सहकारी संस्थाओं के चुनाव माननीय उच्च न्यायालय के निर्देशानुसार कराये जा रहे हैं क्या अब इन्हें स्थगित करना अवमानना नहीं है।
2. अब स्थगन के दोरान समितियों की विधिक स्थिति क्या रहेगी। कार्य संचालन कैसे होगा। बोर्ड भंग , संचालक गण शक्तिहीन और नये बोर्ड का गठन नहीं।
3. जिन समितियों में निर्वाचन की घोषणा शेष है उन में स्थगन के पश्चात यदि चुनाव पुन: नये वित्तीय वर्ष में कराये जाने हो तो खऱीद / ऋण संबंधी नियम क्या लागू होंगे। क्या यह क़ानूनी जटिलता बढ़ाने वाला आदेश नहीं है।
5. यदि कोई प्रत्याशी जिसने पर्चा दाखिल कर दिया हो वह न्यायालय की शरण ले तो क्या उसे राहत नहीं मिलेगी। और आदेश निष्प्रभावी ना होगा। चूँकि सहकारिता चुनाव प्राधिकरण अपने लगभग सभी पत्रों में उच्च न्यायालय के आदेश का हवाला देते हुए चुनाव प्रक्रिया शीघ्र संपन्न कराने का जिक्र करता रहा है।
प्रकिया बीच मे नही रोकी जाती
जानकार बताते है कि इस प्रकार चुनावी प्रकिया रोके जाने के दौरान सहकारी समितियों के संचालन ठप्प हो जाता है,संचालक मंडल की स्थिति शून्य हो गयी है।
संसद या विधानसभा के सत्र के दौरान निर्वाचन प्रकिया प्रारम्भ करने के पूर्व के आदेश गलत थे? या अब के,?