तहलका न्यूज,बीकानेर।गोपेश्वर महादेव मंदिर गंगाशहर में दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की ओर से सात दिवसीय श्री राम कथामृत का भव्य आयोजन किया गया है। जिसमें संस्थान के संस्थापक एवं संचालक आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी सुश्री त्रिपदा भारती ने कथा के तृतीय दिवस में बाल लीला प्रसंग का वर्णन किया। कथा का शुभारंभ महावीर जोशी,घनश्याम गर्ग,डा.श्याम अग्रवाल,जगदीश गर्ग के द्वारा पूजन से किया गया । साध्वी जी ने कहा कि प्रभु श्री राम ने जन कल्याण के लिए त्रेता युग में अवतार लिया। प्रभु जब कोई कार्य करते हैं तो वह लीला कहलाती है। प्रभु द्वारा की गई प्रत्येक लीला में आध्यात्मिक रहस्य छिपे होते हैं। प्रभु की लीला दिव्य होती है। साधारण मानव उन लीलाओं को समझ नहीं पाते क्योंकि हम अपनी बुद्धि का प्रयोग करते हैं लेकिन प्रभु बुद्धि का विषय ही नहीं है। उन्होंने बताया कि श्री राम अपने भाइयों सहित गुरुकुल में जाते हैं। वहां पर गुरु के सानिध्य में प्रभु शास्त्र और शस्त्र दोनों का ज्ञान प्राप्त करते हैं। भारी विद्या के साथ प्रभु आध्यात्मिक विद्या को भी प्राप्त करते हैं। हमारी वैदिक काल के गुरुकुल मानव की निर्माण स्थली होते थे किंतु आज की शिक्षा प्रणाली केवल एक पक्ष को लेकर कार्य कर रही है । इसीलिए आज पैसा कमाने वाले मानव का निर्माण तो होता है परंतु मानव में नैतिक मूल्यों और आदर्शों की कमी है। शिक्षा का उद्देश्य केवल धन अर्जन ही है। यही कारण है कि मानव आज कल्याण की ओर नहीं अपितु विनाश की ओर उन्मुख हो रहा है। उसमें अहंकार की वृद्धि हो रही है। अगर हम पूर्ण विकास चाहते हैं तो हमें बाहरी शिक्षा के साथ-साथ आध्यात्मिक शिक्षा की भी बहुत जरूरत है। साध्वी जी ने कहा कि हमारी भारतीय संस्कृति का आधार भी अध्यात्म ही है। हमें गर्व होना चाहिए कि हम भारतीय संस्कृति के वंशज हैं जिसने सदैव दम तोड़ती मानवता को नव चेतना से अनुप्राणित किया है। कथा प्रसंग का वर्णन करते हुए साध्वी जी ने बताया कि प्रभु श्री राम प्रात:काल उठकर माता- पिता और गुरुजनों के चरणों में प्रणाम करते हैं। यह हमारी संस्कृति है। परंतु यदि आज हम अपने जीवन में देखें तो यह संस्कार खत्म होते जा रहे हैं। पाश्चात्य संस्कृति का ऐसा प्रभाव है कि आज वर्तमान समय में हम अपने संस्कारों और नैतिक मूल्यों से दूर होते जा रहे हैं। प्रभु श्री राम का जीवन चरित्र हमें संस्कारवान बनना सिखाता है। गो संरक्षण पर विचार व्यक्त करते हुए साध्वी जी ने कहा कि गाय भारतीय संस्कृति का आधार है ।गोधन के समान इस संसार में कोई धन नहीं है ।गाय सुख संपत्ति का मूल है। पुरातन समय में हमारी अर्थव्यवस्था और सामाजिक व्यवस्था का आधार गाय थी। जिस कारण हमारे आर्ष ग्रंथों में गाय को कामधेनु का दर्जा प्राप्त है ।हमारे शास्त्रों में कहां गया है-” गावो विश्वस्य मातर:” अर्थात गाय विश्व की माता है। गाय को माता मानकर उसकी पूजा की जाती है इसलिए गौ रक्षा करना सभी का कर्तव्य है।
कथा प्रसंग के माध्यम से साध्वी ने बताया कि प्रभु श्री राम सभी के अंतः करण को प्रकाशित करने वाली एक शक्ति है। जिसकी विषय में कबीर दास जी ने अपनी वाणी में लिखा -“जो तिल माही तेल है ज्यों चकमक में आग,तेरा साहिब तुझ में जाग सके तो जाग “। ब्रह्म ज्ञान के माध्यम से प्रभु की उस शक्ति का अनुभव अपने घट के भीतर किया जा सकता है। जब जीवन में हम किसी पूर्ण गुरु के सानिध्य को प्राप्त करते हैं तो वह हमारे भीतर दिव्य दृष्टि को उद्घाटित कर हमें प्रभु के प्रकाश रुप का अनुभव भीतर ही करवा देते हैं। कथा में साध्वी बहनों द्वारा सुमधुर चौपाइयों और भजनों का गायन भी किया गया। कथा का समापन सीताराम,जितेन्द्र सोनी,रामलाल,मनु सेवग,जुगल उपाध्याय,देवशंकर जाजड़ा,किशन जाजड़ा,आशाराम द्वारा प्रभु की पावन मंगल आरती के साथ हुआ।