जयनारायण बिस्सा
तहलका न्यूज,बीकानेर। प्रदेश में इस वर्ष चुनाव होने वाले है और इसको लेकर दोनों राजनीतिक पार्टियों ने अपनी अपनी तैयारी शुरू कर दी है। जहां भाजपा ने अपने संगठनात्मक ढ़ाचे के जरिये जंग जीतने की तैयारी कर ली तो कांग्रेस अभी इस समस्या से जूझ रही है। हालात यह है कि आपसी खींचतान के कारण प्रदेश के कई जिलों में जिले के कप्तान की नियुक्तियां भी अधर में पड़ी है। इतना ही नहीं राजनीतिक नियुक्तियों की आस लगाएं बैठे वरिष्ठ नेता और कार्यकर्ताओं में भी अब निराशा छाने लगी है। ऐसे में चुनावी मोड में कांग्रेस कही न कही भाजपा से थोड़ी पिछडऩे लगी है। राजनीतिक जानकारों की माने तो कांग्रेस के जिलाध्यक्ष की नियुक्ति को लेकर एक ऐसा पेच फंसा है। जिससे पार्टी का शीर्ष नेतृत्व को भी चिंता सताने लगी है। विश्वस्त सूत्रों के अनुसार इसकी बड़ी वजह न्यास अध्यक्ष है,जहां ओबीसी वर्ग के दावे के साथ अल्पसंख्यक वर्ग ने भी पुरजोर तरीके से अपना दावा पेश कर रखा है। अन्दखाने की बात तो यह है कि अल्पसंख्यक वर्ग की ओर से तो शीर्षस्थ नेताओं को संकेत भी दिए है कि न्यास अध्यक्ष या जिलाध्यक्ष में से एक पद नहीं दिया गया तो पार्टी को इसका खामियाजा भोगना पड़ सकता है। हालांकि इस दावे में कि तना दम है यह तो आने वाला समय तय करेगा। किन्तु जिलाध्यक्ष पद की नियुक्ति को लेकर हो रही लेटलतीफी में कही न कही यह संभावना अब प्रबल रूप लेती जा रही है। उधर देहात अध्यक्ष पद पर डूडी और विरोधी गुट में ठनी हुई है। जहां गोविन्द,मंगलाराम व वीरेन्द्र की जुगलबंदी ने आलाकमान को फैसला लेने से पहले सोचने को मजबूर कर दिया तो डूडी भी देहात की कमान अपने हाथ में रखने के लिये दमखम लगा रहे है। ऐसे में दोनों की जिलाध्यक्षों को लेकर कांग्रेस में कमोवेश के हालात बने हुए है। अब देखना है कि पार्टी का आला नेतृत्व किस तरह सन्तुलन बैठाकर नियुक्ति कर आगामी चुनाव की वैतरणी को पार करने की जुगत करता है।
हाथ से हाथ जोड़ों यात्रा बनी दावों की मजबूत करने का जरिया
जहां भाजपा ने आमजन से सीधे जुड़ाव के लिये जन आक्रोश यात्रा निकाली थी वहीं कांग्रेस ने हाथ से हाथ जोड़ो अभियान चलाकर आम आवाम को अपनी ओर मोडऩे का प्रयास शुरू किया है। किन्तु दोनों ही पार्टियों की इन यात्राओं का हश्र महज दावेदारों की स्वार्थसिद्वि में ही नजर आया है। भाजपा के दावेदारों की तरह कांग्रेस के दावेदारों ने भी हाथ से हाथ जोड़ों के माध्यम से चुनावी मैदान में उतरने का बिगुल बजा दिया है। जिसका सीधा प्रमाण ब्लॉक अध्यक्षों की नियुक्तियों के तौर पर देखा जा रहा है। जिन पर दो ब्लॉक अध्यक्षों की पुर्ननियुक्ति के साथ एक पार्षद को जिम्मेदारी दी गई है।