नई दिल्ली।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को लगातार तीसरी बार पीएम पद की शपथ ली। लेकिन इस बार के चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिलने के कारण देश एक बार फिर से गठबंधन की सरकार बनी है। 2014 से 2024 तक पूर्ण बहुमत की सरकार चलाने वाली बीजेपी इस बार 240 सीटों पर सिमट कर रह गई। हालांकि उसके नेतृत्व वाली NDA गठबंधन को बहुमत जरुर मिल गया।वहीं, नई सरकार में मंत्री पद और लोकसभा स्पीकर के पद को लेकर खींचतान की खबरें सामने आ रही है। कई रिपोर्टों में दावा किया गया है कि इस चुनाव में किंगमेकर के रूप में उभरी टीडीपी और जेडीयू दोनों ही लोकसभा स्पीकर के पद पर अपना कब्जा चाहती है। वहीं भाजपा इस पद को अपने किसी भी सहयोगी को देने के लिए तैयार नहीं है। ऐसे में बड़ा सवाल खड़ा हो गया है कि आखिर इस पद में ऐसा क्या है जिसे लेकर NDA गठबंधन के सहयोगियों में इतना ज्यादा रस्साकशी है।

आखिर क्यों खास है लोकसभा स्पीकर का पद
बता दें कि लोकसभा स्पीकर का पद एक संवैधानिक पद है। संसद में किसी बिल के पास होने या किसी प्रस्ताव के समय इनकी भूमिका निर्णायक हो जाती है। दरअसल, स्पीकर के पास एक दल-बदल विरोधी कानून लागू करने का अधिकार होता है जो सदन के अध्यक्ष को बहुत शक्तियां देता है। कानून के अनुसार, “सदन के अध्यक्ष के पास दल-बदल के आधार पर सदस्यों की अयोग्यता से संबंधित मामलों को तय करने का पूर्ण अधिकार है।” वहीं, नीतीश कुमार पहले भी बीजेपी पर अपनी पार्टी को तोड़ने की कोशिश करने का आरोप लगा चुके हैं। इसलिए, वह किसी बगावत के मूड में नहीं आना चाहते हैं और स्पीकर का पद ऐसी किसी भी चाल के खिलाफ ढाल के तौर पर चाहते हैं। वहीं, अटल बिहारी बवाजपेयी की सरकार के समय चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी के पास ये पद होने के कारण ये इस बार भी इस पद पर अपना कब्जा चाहती है।

ऐसे होता है लोकसभा स्पीकर का चुनाव
संविधान के अनुसार, नई लोकसभा के पहली बार बैठक से ठीक पहले अध्यक्ष का पद खाली हो जाता है। राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त प्रोटेम स्पीकर नए सांसदों को पद की शपथ दिलाता है। इसके बाद लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव साधारण बहुमत से होता है। वैसे तो लोकसभा अध्यक्ष के रूप में चुने जाने के लिए कोई विशेष पैमाना नहीं है, लेकिन इसके लिए संविधान और संसदीय नियमों की समझ होना जरूरी है। पिछली दो लोकसभाओं में बीजेपी को स्पष्ट बहुमत मिली थी और पार्टी ने और सुमित्रा महाजन और ओम बिरला अध्यक्ष को यह जिम्मेदारी दी थी।

चुनौतियां कम नहीं
लोकसभा स्पीकर के पद को एक पेचीदा पद माना जाता है। सदन को चलाने वाले व्यक्ति के रूप में, अध्यक्ष का पद निस्पक्ष माना जाता है। लेकिन इस पद पर बैठने वाले व्यक्ति किसी विशेष पार्टी से ही चुनाव जीतकर संसद में आते हैं। इससे टकराव होने की संभावनाएं स्वभाविक है। पूर्व के कुछ दिलचस्प उदाहरणों की बात करे तो कांग्रेस के दिग्गज नेता एन संजीव रेड्डी ने चौथी लोकसभा के अध्यक्ष चुने जाने के बाद कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था। पीए संगमा, सोमनाथ चटर्जी और मीरा कुमार जैसे अन्य लोगों ने औपचारिक रूप से पार्टी से इस्तीफा नहीं दिया, लेकिन उन्होंने पुष्टि की कि वे पूरे सदन के हैं, किसी पार्टी के नहीं। इतना ही नहीं, 2008 में यूपीए सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के दौरान निस्पक्षता दिखाने की वजह से सीपीएम ने सोमनाथ चटर्जी को निष्कासित कर दिया था।

डिप्टी स्पीकर का पोस्ट सहयोगियों को दे सकती है बीजेपी
हमारे देश में डिप्टी स्पीकर का पद भी एक संवैधानिक पद है। राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश जेडीयू के राज्यसभा सांसद हैं। वहीं, बीजेपी इस बार लोकसभा के डिप्टी स्पीकर का पोस्ट चंद्र बाबू नायडू को दे सकती है। जिससे की सहयोगियों के साथ सरकार चलाने में किसी भी तरह की परेशानी का सामना न करना पड़े। बता दें कि लोकसभा अध्यक्ष की नामौजूदगी में स्पीकर की शक्तियां डिप्टी स्पीकर के पास आ जाती है और वो सदन की कार्यवाही को सुचारु रुप से चलाने के लिए जिम्मेदार होता है।