




जयनारायण बिस्सा
तहलका न्यूज,बीकानेर। बसंती बयार के इस फाल्गुन माह में जीवन की एक अलग ही उमंग होती है। जीवन के रंगों को दर्शाता यह महीना अपनी अल्हड़ता व मस्ती के लिए पूरी दुनिया में विशेष अंदाज में जिया जाता है। भारत में फाल्गुन माह में रंगों का त्योहार ‘होली अपना विशेष स्थान रखता है। वैसे तो ‘ब्रज की ल_मार होलीÓ पूरी दुनिया में अपनी अलग पहचान रखती है लेकिन राजस्थान के बीकानेर की होली भी अपने अंदर मस्ती, उल्लास के साथ-साथ परंपरा के विशिष्ट रंग लिए हुए है।
होली की शुरुआत
बीकानेर में होली का त्योहार नौ दिन तक मनाया जाता है। फाल्गुन माह में खेलनी सप्तमी से शुरू हुआ यह त्योहार धुलंडी के दिन तक अनवरत जारी रहता है। बीकानेर के शाकद्विपीय ब्राह्मणों के द्वारा खेलनी सप्तमी के दिन मरुनायक चौक में ‘थम्ब पूजन के साथ ही होली के त्योहार की शुरुआत हो जाती है। चूंकि शाकद्विपीय समाज के लोग बीकानेर के मंदिरों के पुजारी हैं अत: शहर के प्राचीन नागणेची मंदिर में धूमधाम से पूजा की जाती है और मां को गुलाल अबीर से होली खेलाई जाती है। इस फागोत्सव के बाद पुरुष चंग बजाते हुए व फाग के गीत गाते हुए शहर में प्रवेश करते हैं तथा होली के प्रारम्भ की सूचना देते हैं। अगले ही दिन अष्टमी को शहर के किकाणी व्यासों के चौक में, लालाणी व्यासों के चौंक में, सुनारों की गुवाड़ में व अन्य जगहों पर भी थम्ब पूजन कर दिया जाता है और इसी के साथ ही होलकाष्टक प्रारम्भ हो जाते हैं। होलाकाष्टक का पूरा समय मस्ती, उल्लास, अल्हड़ता के बिताया जाता है। इन दिनों में विवाह आदि शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं।
होली व रम्मतों का दौर
होली के दिनों में होने वाली रम्मतों के कारण ही बीकानेर को रम्मतों का शहर कहा जाता है। होलकाष्टक के दिनों में शहर के प्रत्येक चौक में किसी न किसी रम्मत का आयोजन अवश्य होता है। रम्मत नाटक की एक विधा है जिसमें पात्र अभिनय करते हैं। रम्मत में पात्रों द्वारा गद्य विद्या में संवाद बोले जाते हैं और ख्याल, लावणी, चौमासे गाए जाते हैं। रम्मत में किसी न किसी कथानक का सहारा लेकर भी अभिनय होता है। बीकानेर शहर के बारहगुवाड़ चौक में फक्कडदाता की रम्मत, हडाऊ मेरी की रम्मत, स्वांगमेरी की रम्मत खेली जाती है। इसी तरह बिस्सों के चौक में भक्त पूरणमल या शहजादी नौटंकी का मंचन होता है। इसी तरह भ_डों के चौक में हड़ाऊ मेरी की रम्मत, आचार्यों के चौक में अमरसिंह राठौड़ की रम्मत व किकाणी व्यासों के चौक में जमनादास कल्ला की रम्मत का आयोजन होता है। रम्मतों में उमडऩे वाली भीड़ से स्वत: अंदाजा लगाया जा सकता है कि बीकानेर का आम जनमानस कितने गहरे तक अपनी परंपराओं व रीति-रिवाजों से आज भी जुड़ा हुआ है।
होली व ‘गैर की धूम
होली के दिनों में बीकानेर के पुष्करणा ब्राह्मणों,शाकद्विपीय ब्राह्मणों व माहेश्वरी समाज के लोगों द्वारा ‘गैर निकाली जाती है। गैर में पुरुष ही शामिल होते हैं और फाग के गीत गाते हुए व चंग बजाते हुए विभिन्न मौहल्लों से निकलते हैं। चंग की थाप पर पारम्परिक गीत गाते हुए ये लोग मस्ती का जबरदस्त माहौल पैदा करते हैं। इन गैरों का रास्ता अपने ही रिश्तेदारों व सगे संबंधियों के घरों के आगे से होता है व इस दौरान होली के दौरान होने वाली छिंटाकसी भी चलती रहती है। सगे संबंधी इन गैरों के रोकने के लिए ‘तणी बांधते हैं और इन तणी को तोड़कर ही गर आगे जाती है। तणी तोड़ते वक्त जो नजारा बनता है उससे बरबस ही महाराष्ट्र के गोविन्दा आला रे आला की याद आ जाती है व महसूस होता है कि विभिन्न संस्कृतियों का हमारा भारत किस तरह एकता के सूत्र में पिरोया है।
होली व डोलची पानी का खेल
बीकानेर की होली का सबसे आकर्षण का केंद्र होता है पुष्करणा ब्राह्मण समाज के हर्ष व व्यास जाति के बीच खेला जाने वाला डोचली पानी का खेल। ‘डोलची चमड़े का बना एक ऐसा पात्र है जिसमें पानी भरा जाता है। इस डोलची में भरे पानी को पूरी ताकत के साथ सामने वाले की पीठ पर मारा जाता है।
बीकानेर के हर्षों के चौक में रहने वाले इस आयोजन को देखने के लिए भारी भीड़ उमड़ती है। प्रेम के नीर से भरी यह डोलची जब प्यार से पीठ पर पड़ती है तो इसकी गर्जन दर्शकों को भी आह्लादित कर देती है। करीब चार सौ साल से चल रहे इस आयोजन के पीछे अपना एक समृध्द व गौरवशाली इतिहास है जो जातीय संघर्ष से जुड़ा हुआ है। हर्ष व व्यास जाति के लोग आज भी बड़ी शिद्दत व ईमानदारी से इस इतिहास को सहेजे हुए हैं। ऐसा ही एक आयोजन बीकानेर के बारहगुवाड़ चौक में ओझा व छंगाणी जाति के बीच होलिका दहन वाले दिन होता है।
होली व स्वांग की मस्ती
होली के अवसर पर बीकानेर में स्वांग बनने की मस्ती का अपना एक अलग ही अंदाज है। गलियों व मौहल्लों में आठ दिनों तक स्वांग बने पुरुषों की धूम रहती है। शहर की गलियों में ब्रह्मा, विष्णु व शिव मिल जाएंगे।
फिल्मी हस्तियों से लेकर ठेठ देहाती वेशभूषाधारी स्वांग देखकर आप दांतों तले उंगली दबा लेंगे। इन स्वांग बने रसियों के लिए शहर में ‘फागणिया फुटबॉल के मैच का भी आयोजन होता हैं। इन स्वांगों को मिस बीकाणा के अवार्ड से भी नवाजा जाता है।
होली का दूल्हा विशेष आकर्षण
धुलंडी वाले दिन शहर के हर्ष जाति के दूल्हे की बारात निकलती है। विष्णुवेशधारी यह दूल्हा किकाणी व लालाणी व्यास जाति सहित दम्माणी जाति के करीब तेरह से सत्रह घरों में जाता है। यहां घर की औरतें पारंपरिक व विधिवत रूप से दूल्हे का स्वागत करती है।
बारात का जगह जगह पर चाय, दूध व नाश्ते से स्वागत होता है। इन घरों के आगे घूमकर बिना दूल्हन लिए ही होली का यह दूल्हा अपनी संस्कूति व इतिहास को समृध्द करने का संदेश देकर वापस लौट आता है। यह आयोजन अपने अंदर एक समृध्द सांस्कृतिक धरोहर को समेटे हुए है।
होली की परंपरा व मस्ती
होलकाष्टक के आठ दिनों तक शहर के लोग पापड़ नहीं खाते। होलीका दहन के तुरंत बाद ही शहर में पापड़ का स्वाद बिखर जाता है। सबसे पहले बीकानेर के राजपरिवार की होली का दहन जूनागढ़ के आगे होता है इसके बाद शहर के साले की होली व बारहगुवाड़ चौक में होलीका दहन होता है और सबसे अंत में दम्माणी चौक में होलीका दहन होता है।
होली के दिनों में शहर में भांग की मस्ती भी परवान पर रहती है। भांग के नमकीन व मिठाइयां खूब खाई जाती हैं। इसी के साथ सूखी व गीली भांग का भी दौर रहता है। ऐसा लगता है जैसे भंग की इस तरंग में मानो पूरा शहर ही डूबा हुआ हो। धुलंडी वाले दिन शहर में पारंपरिक अश्लीलता अपने चरम पर रहती है। होली की मस्ती में शहर का हर बूढ़ा, नौजवान व बच्चा रंगा होता है। उम्र व पीढिय़ों की सीमा तोड़कर धुलंडी के दिन शहर की संस्कृति साझा हो जाती है। दिनभर की मस्ती व उमंग सूर्यास्त के बाद तक जारी रहती है और देर रात जाकर समाप्त होती है। इस तरह बीकानेर की होली में अल्हड़ता है,
मस्ती है, इतिहास है, संस्कृति है
गौरव है, रंग है तथा वह सब है जो जीवन मे ऊर्जा देता है। बीकानेर की होली अपने दामन में कई रंग समेटे है जो इन आठ दिनों में खुलकर बिखरते हैं। इन रंगों में भीगकर सरोबार होने के लिए भारतभर में फैला बीकानेरी अपने शहर में जरूर आता है व पूरी तरह से रंग जाने की कोशिश करता है।