तहलका न्यूज,बीकानेर। सरकारें बदले या जनप्रतिनिधि। सरकारी सिस्टम अपने अनुसार ही कामकाज करता है और परेशानी हमेशा जनता हो होती आई है। कुछ ऐसा ही इन दिनों बीकानेर में ज्यादा हो रहा है। बात चाहे पुलिस महकमें के चालान के बाद उठने वाले विवाद की हो या पीबीएम अस्पताल में कार्मिकों द्वारा मरीज व उनके परिजनों से बदसूलकी। ऐसी घटनाओं के सार्वजनिक होने के बाद भी प्रशासन व पुलिस के मुखिया किसी प्रकार की हरकत में नहीं आते। जनता अपनी भड़ास सोशल मीडिया पर निकालकर रह जाती है। जबकि होना यह चाहिए कि इस प्रकार की घटना ओं पर प्रशासन के आकाओं को फैसले लेने चाहिए ताकि सुशासन के दावे करने वाली सरकारों की पोल न खुलें। बीकानेर में पिछले 48 घंटों में कई ऐसी घटनाएं सामने आई है। जिसने अब सोचने को मजबूर कर दिया है।

पुलिस की दंबगई या खाकी का रूतबा!
शहर में चैकिंग के नाम पर जिस तरह पुलिस ने अपना रवैया अपना रखा है। उससे आमजन में पुलिस की छवि ओर धुमिल हुई है। हेममेट या वाहन चैकिंग के नाम पर जिस तरह पुलिस वाहन चालकों के साथ बर्ताव कर रही है। उससे न केवल लोगों में आक्रोश है। बल्कि उनकी इस प्रकार की हरक तों ने पुलिस के स्लोगन को भी शर्मसार किया है। बीछवाल थाना इलाके में 24 घंटे में चैकिंग के नाम पर दो बवाल हो गये। पहले भाजपा नेता डॉ भगवान सिंह मेडतिया की पुलिस अधिकारियों से तकरार। वहीं देर रात दो व्यक्तियों द्वारा पुलिस पर मारपीट का आरोप। हालात यह है कि इन दोनों घटनाओं के विडियो भी सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहे है। इनमें आमजन की राय भी खाकी की गुडागर्दी की ओर इशारा कर रही है। मजे क ी बात तो यह है कि इन दोनों घटनाओं में पुलिस के अधिकारी मौजूद रहे है। फिर भी कानून की आड़ में जिस तरह का बर्ताव पुलिस की ओर से कि या गया। कही न कही वो सिस्टम व सरकारों को सोचने को मजबूर कर रहा है। जबकि देखने को मिलता है कि जिस सिस्टम को सुधारने की वे पैरवी कर रहे है। उनको पुलिस भी अधिकांश तोड़ती नजर आती है।

पीबीएम:महज बातें है बातों का क्या
कुछ ऐसे ही हालात संभाग के सबसे बड़े पीबीएम अस्पताल के है। जहां आएं दिन मरीज-उनके परिजनों का स्टाफ से दो दो हाथ होने की घटनाएं हो रही है। जिसके बाद पीबीएम रेजिडेन्टस व नर्सिगकर्मी हड़ताल को ढाल बनाकर अपने उच्चाधिकारियों पर दबाव बनाकर मानवीय सेवा को भूल जाते है। सोचने वाली बात तो यह है कि कर्तव्य की शपथ लेकर नर सेवा नारायण सेवा का दावा करने वाले चिकित्सक व चिकित्सकीय स्टाफ आखिर ऐसा क्यों करते है। अस्पताल में गंभीर हालत में आने वाला हर रोगी व उनका परिजन अच्छे इलाज की परिकल्पना करता है। ऐसे में कई बार लेट लतीफी में बदजुबानी भी हो जाता है। कई बार तो विवाद के हालात भी बनते है। परन्तु इन घटनाओं के बाद सिस्टम में सीख की बजाय द्वेष की भावनाएं ज्यादा देखने को मिलती है। आवाज उठाने वालों पर नजर रखी जाती है। जिससे विवाद खत्म होने की बजाय बढ़ता जाता है।

निगम का नहीं कोई धणी धोरी
नगर निगम शहर का सबसे अहम विभाग है। जहां जनता का सीधा अधिक ारियों व कार्मिकों से जुड़ाव है। लेकिन यहां भी न तो अधिकारियों और न ही कार्मिकों का स्वभाव बदला है। अपनी सीट की धमक के चलते आमजन से सीधे मुंह बात नहीं करने से विवाद की स्थितियों पैदा होती है। मंजर तो यह है कि अनेक बार निगम कार्मिक की गलती का खामियाजा आवेदक को आर्थिक रूप से भुगतना पड़ा है। ऐसे कई मामले भी सामने आएं है। जहां जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्रों में या तो नाम गलत अंकित कर दिए जाते है या अस्पताल से जानकारी के अभाव में आवेदनकर्ता पर जुर्माना लगा देते है। इतना ही नहीं जब पीडि़त फोन या व्यक्तिगत रूप से सक्षम अधिकारी से बात करने का प्रयास करता है तो उसे ज्ञान की गंगा में डूबकी लगवा देते है।

तहलका न्यूज चलाएगा ऐसी घटनाओं की सीरीज
तहलका न्यूज पोर्टल सरकारी महकमों में आमजन को प्रताडि़त करने की पूरी सीरीज चलाएगा। अगर पीडि़त की सुनवाई दस्तावेजों या पूरी प्रक्रियाओं के बाद भी नहीं हो रही है तो हम आपके सारथी बनकर सरकार व सिस्टम की हकीकत को सामने लाएंगे। आप हमारे तहलका न्यूज ग्रुप को ज्वाइन करें और व्यक्तिगत नंबरों पर अपनी पीड़ा भेजे। हम आपकी आवाज बनकर आपकी परेशानी दूर करने की कोशिश करेंगे।