तहलका न्यूज,बीकानेर। कुछ ही माह में राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और इससे ठीक पहले कईं विधानसभा क्षेत्रों में मतदाता सूची में धांधली को लेकर प्रकरण सामने आ रहे हैं। विधानसभा क्षेत्र बीकानेर पश्चिम में भी इसको लेकर पहले भी दोनों मुख्य पार्टियों के नेताओं ने मीडिया को जानकारी दी है। भाजपा नेता अरुण आचार्य कुछ ही दिन पहले मुख्य चुनाव अधिकारी, निर्वाचन आयोग राजस्थान,सांसद व कलेक्टर को पत्र लिखकर जांच की मांग कर चुके हैं। इसको लेकर आचार्य ने आज बीकानेर के कलेक्टर भगवती प्रसाद कलाल से चर्चा के लिए समय तय किया। काफी आनाकानी करने के बाद कलेक्टर महोदय ने दोपहर 3रू30 पर मिलने के लिए बुलाया तो अरुण आचार्य अपने कुछ साथियों के साथ कलेक्टर से मिलने पहुंचे लेकिन उनके द्वारा आचार्य और उनके साथियों को इस मामले को फर्जी बताते हुए यह कहा गया कि इसको लेकर जांच कर दी गयी है और रिपोर्ट राजस्थान निर्वाचन आयोग को भेज दी गयी है। जब आचार्य ने मामले को गंभीरता से लेकर निष्पक्ष जांच करने की बात कही तो बीकानेर कलेक्टर भगवती प्रसाद ने कार्यालय से बाहर निकलने का आदेश दिया और पुलिस कर्मचारियों को मौके पर बुला लिया जिसके पश्चात पुलिस व र्क्रष्ट के कर्मचारियों ने भाजपा नेता और उनके साथियों के साथ धक्का मुक्की करते हुए बर्बरता पूर्ण रूप से घसीट कर बाहर ले आये। आचार्य और उनके साथियों ने जब इसका विरोध किया तो गिरफ्तार करने की धमकी देने लगे और कलेक्टर महोदय के आदेशानुसार पुलिस ने आचार्य और उनके साथियों राजन, कन्हैयालाल, नवनीत, एड ललित मोहन, नरेंद्र, आशीष व अन्य को हाथापाई करते हुए कार्यालय से बाहर निकाल दिया। बताया जा रहा है कि विधानसभा क्षेत्र बीकानेर पश्चिम में 13343 मतदाता ऐसे हैं जिनकी उम्र 30 से 65 वर्ष के बीच है और जो पहली बार अपने मताधिकार का प्रयोग करने जा रहे हैं जोकि एक बहुत ही संदेहास्पद स्थिति को दर्शाता है। इसी को लेकर आचार्य बीकानेर कलेक्टर से एक सार्थक चर्चा करने के लिए गए थे लेकिन कलेक्टर ने यह तर्क दिया कि इसमें कुछ नाम ऐसे है जो अन्य विधानसभा से काटकर बीकानेर पश्चिम में जोड़े गए हैं तो आचार्य ने जब यह पूछा कि हो सकता है कि कुछ नाम सही हो लेकिन 13000 से अधिक मतदाताओं पर 2 ही दिन में जांच कैसे संभव है और इसकी प्रक्रिया क्या है तो इस पर कलेक्टर साहब कोई जवाब नहीं दे पाए और आग बबूला हो गए। जब अरुण आचार्य ने बात करनी चाही तो पुलिस ने उन्हें व उनके कार्यकर्ताओं को बाहर खदेड़ दिया। ऐसी घटनाओं को देखते हुए आज सवाल यह बनता है कि लोकतंत्र में एक सभ्य समाज के किसी शिक्षित व्यक्ति द्वारा एक जायज मांग करना क्या अनुचित कदम है और उससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि जनता की सेवा करने वाले नुमाइंदे अगर पद का इस तरह से दुरूपयोग करने लगेंगे तो फिर जनता किससे उम्मीद करे और आने वाले समय में निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव प्रक्रिया कैसे संभव है?