जयनारायण बिस्सा
तहलका न्यूज,बीकानेर। प्रदेश में विधानसभा के चुनाव का बिगुल बिगुल बच चुका है। तारीखों के एलान होने के साथ ही सभी राजनीतिक दल अब चुनावी समर को जीतने में जुट गये है। हालांकि अभी तक किसी भी राजनीतिक दल ने अपने प्रत्याशी की घोषणा नहीं की है। भाजपा की पहली सूची जारी होने के बाद अब तक दोनों ही प्रमुख पार्टियों के प्रत्याशियों का ऐलान करने में आलाकमान झिझक रहा है। दोनों ही दलों में पिछली बार के उम्मीदवारों के प्रति कार्यकर्ताओं के असंतोष के चलते टिकट जारी किए जाने में अभी और समय लगना स्वाभाविक है। दूसरी ओर पिछली बार के भाजपा से बागी होकर चुनाव लड़े प्रभुदयाल सारस्वत ने निरंतर सक्रिय रहकर इस बार भी निर्दलीय लडऩे का ऐलान कर घर घर दस्तक देना शुरू कर चुके है।

बेनीवाल का विकल्प तलाशते कांग्रेसी
कांग्रेस इस क्षेत्र में, पूर्व गृह राज्य मंत्री वीरेंद्र बेनीवाल की उम्मीदवारी में पिछले दोनों ही चुनाव हार चुकी है तथा पार्टी का एक धड़ा इसी मुद्दे पर प्रत्याशी बदलाव की मांग कर रहा है। लगातार चुनाव हारने वाले को टिकट नहीं देने के पार्टी के एलान के बाद, कांग्रेस के कई वरिष्ठ कार्यकर्ता अपनी उम्मीदवारी का दावा करते हुए बेनीवाल का विकल्प बनने की कोशिश में हैं। रामेश्वर डूडी से जुड़े डॉ राजेंद्र मूंड तो पिछली बार से ही दावेदारी करते हुए इस बार भी सतत सक्रियता बनाए हुए हैं तथा बदलाव होने पर सबसे आगे दिखने वाला चेहरा बन चुके हैं। क्षेत्र में लगातार जनसंपर्क और पार्टी के प्रदेश संगठन में दायित्व रखने वाले मूंड कांग्रेस के पैनल में मजबूत दमखम के साथ नजर आते हैं। इस दौड़ में पूर्व जिला प्रमुख रही सुशीला सिंवर,रायसिंह गोदारा,मुखराम धतरवाल भी चर्चा में है। सतारूढ़ दल होने के बावजूद विकास के बड़े कार्य नहीं होने और बेनीवाल के व्यक्तिगत विरोध के अलावा कांग्रेस के सामने असंतोष के अन्य मुद्दे ज्यादा प्रखरता में नहीं दिखते हैं।

विवादों में रहे विधायक
सुमित गोदारा भाजपा के मौजूदा विधायक हैं तथा वर्ष 2013 में भाजपा के प्रत्याशी थे लेकिन उस वक्त निर्दलीय माणिकचंद सुराना से पराजित हुए थे। अपनी कार्यशैली और पार्टी में अपनी निजी टीम के बलबूते खुद ही फैसले लेने से भाजपा के कार्यकर्ताओं में गोदारा के प्रति खासा आक्रोश नजर आता है। चुनाव हारे होने के बावजूद वर्ष 2015 के पंचायत राज चुनाव में गोदारा ने अपने कोटे की सभी छः सीटें सजातियों को दे दी तथा सुराना के कोटे के प्रत्याशियों के सामने भी निर्दलीय खड़े कर दिए थे। अपने कोटे से जीते सदस्यों में से कुछेक के उसी वक्त प्रधान चुनाव में कांग्रेस में चले जाने से पार्टी के निशाने पर भी आ गए थे। वसुंधरा गुट से जुड़े होने के कारण पिछली बार भी पुनः टिकट प्राप्त कर ली और भाजपा के प्रभुदयाल सारस्वत बागी भी हुए थे।
राजनीतिक जानकारों के अनुसार ब्राह्मण वर्ग के बागी प्रत्याशी के बावजूद डुडी गुट के सहयोग से विधानसभा में पहुंचे गोदारा अपने आचरण और व्यवहार से हमेशा कही न कही विवादों में रहे। पिछले पंचायत राज चुनाव में टिकटों के वितरण की सारी कमान अपने हाथ में लेकर गोदारा ने भाजपा के अनेकों पात्र और योग्य कार्यकर्ताओं को भी दरकिनार कर दिया था जिसमे ओबीसी मोर्चा के जिलाध्यक्ष तक शामिल थे। लूणकरणसर से जीते निर्दलीय कार्यकर्ताओं ने प्रधान चुनाव में फिर भी पार्टी के साथ ही वोट दिए। जिला परिषद सदस्य के टिकट,कांग्रेस के पदाधिकारियों तक को देने और बाद में प्रमुख चुनाव में ऐसे वोट कांग्रेस को देने के आरोप उन पर लगे और शिकायतों का दौर चला। विधानसभा क्षेत्र की दोनों पंचायत समितियों में प्रधान का पद सामान्य होने के बावजूद दोनों ही टिकट अपने निजी सजातीय वर्ग को देने के बाद पार्टी में बड़ी दरार उत्पन्न हो गई जिसका असंतोष आज भी आलाकमान के पास मुखरता से पहुंच रहा है।संगठन के मुखिया और पार्टी के वरिष्ठ लोगों के साथ मनभेद रखने के कारण क्षेत्र में आज कार्यकर्ताओं की एक बड़ी सं ख्या मौजूदा विधायक के खिलाफ खड़ी है तथा टिकट नहीं बदलने की दशा में घर बैठने का मानस बनाए हुए है। कुल मिलाकर दोनों तरफ असंतोष और प्रत्याशी बदलाव को आतुर कार्यकर्ताओं के बीच राजनैतिक दल ही उहापोह में फसे है जबकि भाजपा के बड़े वोट बैंक वाले धड़े से जुड़े प्रभुदयाल का निर्दलीय लडऩा तय ही है। श्री डूंगरगढ़ में ब्राह्मण वर्ग को प्रत्याशी बना चुकी भाजपा लूणकरणसर में जाट वर्ग को ही टिकट देगी ऐसा कयास है लेकिन मौजूदा विधायक के विरोध में उतरे लोगों का तर्क है कि इसी वर्ग से कोई अन्य भी तो प्रत्याशी बनाया जा सकता है। टिकट बदलाव में लगे असंतुष्ट लोग, पार्टी को पिछले चुनाव के प्रवर्तित प्रत्याशियों की जीत के रूप में अनूपगढ़, सूरतगढ़ पीलीबंगा, रतनगढ़, संगरिया के उदाहरण देते हैं तो बिना बदलाव के चलते हनुमानगढ़, करणपुर, नोहर, भादरा की हार का भी हवाला देते है । अब देखना है कि टिकट वितरण के विरोध की आग को झेल रही भाजपा और कार्यकर्ताओं के दबाव को लेकर कांग्रेस आखिर क्या फैसला लेती है। क्या लूणकरणसर की बदलाव की तासीर एक बार फिर देखने को मिल सकता है। ये तो समय ही बताएगा।